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________________ पण्णरसमं अज्झयणं: नंदीफले जम्बूस्वामी की जिज्ञासा १'जइ णं भंते'! समणेणं भगवया महावीरेणं चोद्दसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते पन्नरसमस्स णायज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अढे पन्नत्ते?' श्री जम्बूस्वामी ने श्री सुधर्मास्वामी के समक्ष जिज्ञासा प्रस्तुत करते हुए कहा-'भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने चौदहवें ज्ञात-अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो पन्द्रहवें ज्ञात-अध्ययन का श्रमण भगवान् महावीर ने क्या अर्थ कहा है?' समाधान २-एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं नयरी होत्था। पुनभद्दे नामं जेइए। जियसत्तू नामं राया होत्था। तत्थ णं चंपाए नयरीए धन्ने नामं सत्थवाहे होत्था, अड्ढे जाव' अपरिभूए। ___ श्री सुधर्मास्वामी उत्तर देते हैं-जम्बू! उस काल और उस समय में चम्पा नामक नगरी थी। उसके बाहर पूर्णभद्र नामक चैत्य था। जितशत्रु नामक राजा था। उस चम्पा नगरी में धन्य नामक सार्थवाह था, जो सम्पन्न था यावत् किसी से पराभूत होने वाला नहीं था। ३-तीसे णं चंपाए नयरीए उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए अहिच्छत्ता नाम नयरी होत्था, रिद्धस्थिमियसमिद्धा, वन्नओ। तत्थ णं अहिच्छत्ताए नयरीए कणगकेऊ नामं राया होत्था, महया वन्नओ। उस चम्पा नगरी से उत्तर-पूर्व दिशा में अहिच्छत्रा नामक नगरी थी। वह धन-धान्य आदि से परिपूर्ण थी। यहाँ नगरी का वर्णन कह लेना चाहिए। उस अहिच्छत्रा नगरी में कनककेतु नामक राजा था। वह महाहिमवन्त पर्वत के समान आदि विशेषणों से युक्त था। यहाँ राजा का वर्णन कह लेना चहिए। (नगरी और राजा का विस्तृत वर्णन औपपातिकसूत्र के अनुसार समझ लेना चाहिए।) । धन्य-सार्थवाह की घोषणा ४-तस्स धण्णस्स सत्थवाहस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे अज्झिथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पजित्था-'सेयं खलु मम विपुलं पणियभंडमायाए अहिच्छत्तं नगरिं वाणिज्जाए गमित्तए' एवं संपेहेइ, संपेहित्ता गणिमं च धरिमं चमेजं च पारिच्छेजंचचउव्विहं भंडं गेण्हइ, गेण्हित्ता सगडीसागडंसजेइ, सज्जित्ता सगडीसागडं भरेइ, भरित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी१. अ. ५ सूत्र ६ २. औप. सूत्र १ ३. औप. सूत्र ७
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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