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चौदहवां अध्ययन : तेतलिपुत्र]
[३५७ १०–तएणं कलाए मूसियारदारए ते अभितरट्ठाणिजे पुरिसे एवं वयासी–'एसचेव णं देवाणुप्पिया! मम सुक्के जेणं तेयलिपुत्ते ममदारियानिमित्तेणं अणुग्गहं करेइ।' ते अभितरठाणिज्जे पुरिसे विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुष्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेई सम्माणेइ, सक्कारित्ता संमाणित्ता पडिविसजेइ।।
तत्पश्चात् कलाद मूषिकारदारक ने उन अभ्यन्तर-स्थानीय पुरुषों से कहा-'देवानुप्रियो! यही मेरे लिए शुल्क है जो तेतलिपुत्र दारिका के निमित्त से मुझ पर अनुग्रह कर रहे हैं।' इस प्रकार कहकर उसने उन अभ्यन्तर-स्थानीय पुरुषों का विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम से तथा पुष्प, वस्त्र, गंध से एवं माला और अलंकार से सत्कार किया, सम्मान किया। सत्कार-सम्मान करके उन्हें विदा किया।
११-तएणं [ते] कलायस्स मूसियारदारगस्स गिहाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव तेयलिपुत्ते अमच्चे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेयलिपुत्तं एयमढं निवेयंति।
तत्पश्चात् वे अभ्यन्तर-स्थानीय पुरुष कलाद मूषिकारदारक के घर से निकले। निकलकर तेतलिपुत्र अमात्य के पास पहुंचे। उन्होंने तेतलिपुत्र को यह पूर्वोक्त अर्थ (वृत्तान्त) निवेदन किया।
१२-तए णं कलाए मूसियारदारए अन्नया कयाइं सोहणंसि तिहि-नक्खत्त-मुहुत्तंसि पोट्टिलेदारियंण्हायंसव्वालंकारविभूसियं सीयं दुरुहइ, दुरुहित्ता मित्तणाइसंपरिवुडे साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सव्विड्ढीए तेयविपुरं मझमझेणं जेणेव तेयलिपुत्तस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोट्टिलं दारियं तेयलिपुत्तस्स सयमेव भारियत्ताए दलयइ।
तत्पश्चात् कलाद मूषिकारदारक ने अन्यदा शुभ तिथि, नक्षत्र और मुहूर्त में पोट्टिला दारिका को स्नान कराकर और समस्त अलंकारों से विभूषित करके शिविका में आरूढ़ किया। वह मित्रों और ज्ञातिजनों से परिवृत होकर अपने घर से निकल कर, पूरे ठाठ के साथ, तेतलिपुर के बीचोंबीच होकर तेतलिपुत्र अमात्य के पास पहुँचा। पहुँच कर पोट्टिला दारिका को स्वयमेव तेतलिपुत्र की पत्नी के रूप में प्रदान किया।
विवेचन-मूषिकारदारक कलाद शुभ तिथि, नक्षत्र और मुहूर्त में अपनी कन्या पोट्टिला का तेतलिपुत्र के घर ले जाकर विवाह करता है। यह उस युग का प्रायः सामान्य-सर्वप्रचलित नियम था। आधुनिक काल में जैसे वर के अभिभावक अपने मित्रों, सम्बन्धियों और ज्ञातिजनों को साथ लेकर-बरात (वरयात्रा) के रूप में कन्या के घर जाते हैं, उसी प्रकार पूर्व काल में कन्यापक्ष के लोग अपने मित्रों आदि के साथ नगर के मध्य में होकर, धूमधाम से-ठाठ-बाट के साथ कन्या को वर के घर ले जाते थे।
ऐसे उदाहरण भी उपलब्ध होते हैं, जब वरपक्ष के जन कन्यापक्ष के घर परिणय के लिए गए, किन्तु ऐसे उदाहरण थोड़े हैं-अपवाद रूप हैं।
१३–तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं दारियं भारियत्ताए उवणीयं पासइ, पासित्ता पोट्टिलाए सद्धिं पट्टयं दुरुहइ, दुरुहित्ता सेयापीएहिं कलसेहिं अप्पाणं मज्जावेइ, मजावित्ता अग्गिहोमं करेइ, करित्ता पोट्टिलाए भारियाए मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबन्धि-परिजणं विपुलेणं
१. पाठान्तर-कारेइ कारेत्ता