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तेरहवाँ अध्ययन : दर्दुरज्ञात ]
आगमन हुआ। तब मैंने श्रमण भगवान् महावीर के निकट पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत रूप श्रावकधर्म अंगीकार किया था। कुछ समय बाद साधुओं के दर्शन न होने आदि से मैं किसी समय मिथ्यात्व को प्राप्त हो
गया।
तत्पश्चात् एक बार किसी समय ग्रीष्मकाल के अवसर पर मैं तेले की तपस्या करके विचर रहा था । तब मुझे पुष्करिणी खुदवाने का विचार हुआ, श्रेणिक राजा से आज्ञा ली, नन्दा पुष्करिणी खुदवाई, वनखण्ड लगवाये, चार सभाएँ बनवाई, इत्यादि सब पूर्ववत् समझना चाहिए; यावत् पुष्करिणी के प्रति आसक्ति होने के कारण मैं नन्दा पुष्करिणी में मेंढक पर्याय में उत्पन्न हुआ । अतएव मैं अधन्य हूँ, अपुण्य हूँ, मैंने पुण्य नहीं किया, अतः मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन से नष्ट हुआ, भ्रष्ट हुआ और एकदम भ्रष्ट हो गया। तो अब मेरे लिए यही श्रेयस्कर है कि पहले अंगीकार किये पांच अणुव्रतों को और सात शिक्षाव्रतों को मैं स्वयं ही पुनः अंगीकार करके रहूँ।
मेंढक की तपश्चर्या
२८ - एवं संपेहेइ, संपेहित्ता पुव्वपडिवन्नाई पंचाणुव्वयाइं सत्तसिक्खावयाई आरुहेइ, आरुहित्ता इमेयारूवे अभिग्गहं अभिगिण्हइ - ' कप्पड़ मे जावज्जीवं छट्टं छट्ठेणं अणिक्खित्तेणं अप्पाणं भवेमाणस्स विहरित्तए । छट्ठस्स वि य णं पारणगंसि, कप्पड़ मे णंदाए पोक्खरिणीए परिपेतेसु फासणं ण्हाणोदएणं उम्मद्दणालोलियाहि य वित्तिं कप्पेमाणस्स विहरित्तए । ' इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ जावज्जीवाए छट्टं छट्टेण जाव [ अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे ] विहरइ ।
नन्द मणिकार के जीव उस मेंढ़क ने इस प्रकार विचार किया। विचार करके पहले अंगीकार किये हुए पाँच अणुव्रतों और सात शिक्षाव्रतों को पुनः अंगीकार किया। अंगीकार करके इस प्रकार अभिग्रह धारण किया- ' 'आज से जीवन पर्यन्त मुझे बेले- बेले की तपस्या से आत्मा को भावित करते हुए विचरना कल्पता है। बेले के पारणा में भी नन्दा पुष्करिणी के पर्यन्त भागों में, प्रासुक (अचित्त) हुए स्नान के जल से और मनुष्यों के उन्मर्दन आदि द्वारा उतारे मैल से अपनी आजीविका चलाना अर्थात् जीवन निर्वाह करना कल्पता है।' उसने ऐसा अभिग्रह धारण किया। अभिग्रह धारण करके निरन्तर बेले बेले की तपस्या से आत्मा को भावित करता हुआ विचरने लगा । भगवत्पदार्पण
२९ - तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयंमा ! गुणसीलए चेइए समोसढे । परिसा णिग्गया । तए णं णंदाए पुक्खरिणीए बहुजणो ण्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं संवहमाणो य अन्नमन्नं एवमाइक्खड़ - जाव [ एवं खलु ] समणे भगवं महावीरे इहेव गुणसीलए चेइए समोसढे । तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! समणं भगवं महावीरं वंदामो जाव [ णमंसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं ] पज्जुवासामो, एयं मे इहभवे परभवे यहियाए जाव [ सुहाए खमाए निस्सेयसाए ] आणुगामियत्ताए भविस्सइ ।
गौतम ! उस काल और उस समय में मैं गुणशील चैत्य में आया। वन्दन करने के लिए परिषद्