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________________ ३३४] [ज्ञाताधर्मकथा आभोएमाणे जाव नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगए जहा सूरियाभे। उस काल और उस समय सौधर्मकल्प में, दर्दुरावतंसक नामक विमान में, सुधर्मा नामक सभा में, दर्दुर नामक सिंहासन पर, दर्दुर नामक देव चार हजार सामानिक देवों, चार अग्रमहिषियों और तीन प्रकार की परिषदों के साथ [तथा सात अनीकों, सात अनीकाधिपतियों, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों तथा बहुत-से दर्दुरावतंसक विमान निवासी वैमानिक देवों एवं देवियों के साथ-उनसे परिवृत होकर, अव्याहत-अक्षत नाट्य, गीत, वादित, वीणा, हस्तताल, कांस्यताल तथा अन्यान्य वादित्रों एवं घनमृदंग-मेघ के समान ध्वनि करने वाले मृदंग, जो निपुण पुरुषों द्वारा बजाए जा रहे थे, की आवाज के साथ] सूर्याभ देव के समान दिव्य भोग योग्य भोगों को भोगता हुआ विचर रहा था। उस समय उसने इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को अपने विपुल अवधिज्ञान से देखते-देखते राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में भगवान् महावीर को देखा। तब वह परिवार के साथ भगवान् के पास आया और सूर्याभ देव के समान नाट्यविधि दिखलाकर वापिस लौट गया। विवेचन-राजपसेणियसूत्र में श्रमण भगवान् महावीर के आमलकल्पा नगरी में पधारने पर सूर्याभ देव के वन्दना के लिए आगमन आदि का अत्यन्त विस्तृत वर्णन किया गया है। वही सब वर्णन यहाँ समझ लेने की सूत्रकार ने सूचना की है। उसका सार इस प्रकार है आमलकल्पा नगरी में भगवान् का पदार्पण हुआ। सभी वर्गों की जनता भगवान् की धर्म-देशना श्रवण करने उनके निकट उपस्थित हुई। उस समय सौधर्मकल्प के सूर्याभ देव ने जम्बूद्वीप की ओर उपयोग लगाया, उसे ज्ञात हुआ कि भगवान् का आमलकल्पा नगरी में पदार्पण हुआ है। तभी उसने भगवान् को वन्दन-नमस्कार करने एवं धर्मदेशना सुनने के लिए आमलकल्पा जाने का निश्चय कर लिया। तत्काल उसने आभियोगिक देवों को बुलाकर आदेश दिया-आमलकल्पा नगरी जाओ और नगरी के चारों ओर एक योजन भूमि को पूरी तरह स्वच्छ करो। कहीं कुछ कचरा, घास-फूस आदि न रहने पाए। तत्पश्चात् उस भूमि में सुगन्धयुक्त जल की वर्षा करो और घुटनों तक पुष्पवर्षा करो। एक योजन परिमित भूमि पूर्ण रूप से स्वच्छ और सुगन्धमय बन जाए। ___ आदेश पाकर आभियोगिक देव प्रक्रिया करके त्वरित देवगति से भगवान् के समक्ष उपस्थित हुए। वन्दनादि विधि करके उन्होंने भगवान् को अपना परिचय दिया-'प्रभो! हम सूर्याभ देव के आभियोगिक देव हैं।' भगवान् ने उत्तर में कहा-'देवो! यह तुम्हारा परम्परागत आचार है, सभी निकायों के देव तीर्थंकरों को वन्दन-नमस्कार करके अपने-अपने नाम-गोत्र का उच्चारण करते हैं।' देवों ने भगवान् के पास से जाकर संवर्तक वायु की विक्रिया की और जैसे कोई अत्यन्त कुशल भृत्य बुहारी से राजा का आंगन आदि साफ करता है, उसी प्रकार उन देवों ने आमलकल्पा के इर्द-गिर्द एक योजन क्षेत्र की सफाई की। वहां जो भी तिनके, पत्ते, घास-फूस कचरा आदि था, उसे एकान्त में दूर जाकर डाल दिया। जब पूरी तरह भूमि स्वच्छ हो गई तो उन्होंने मेघों की विक्रिया की और मन्द-मन्द सुगन्धित जल की वर्षा की। वर्षा से रज आदि उपशान्त हो गई। भूमि शीतल हो गई। तदनन्तर घुटनों तक पुष्प-वर्षा की। इससे एक योजन परिमित क्षेत्र सुगन्ध से मघमघाने लगा। १. विस्तृत वर्णन के लिए देखिए, रायपसेणियसूत्र में सूर्याभ वर्णन।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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