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________________ बारहवाँ अध्ययन : उदकज्ञात] [३२३ मनुष्य चल रहे थे और जब लोग अपने-अपने घरों में विश्राम लेने लगे थे, ऐसे संध्याकाल के अवसर पर जहाँ खाई का पानी था, वहाँ आया। आकर खाई का पानी ग्रहण करवाया। ग्रहण करवा कर उसे नये घड़ों में छनवाया (गलवाया-टपकवाया)। छनवाकर नये घड़ों में डलवाया। डलवाकर उन घड़ों को लांछित-मुद्रित करवाया-अर्थात् मुँह बन्द करके उन पर निशान लगवा कर मोहरें लगवाई। फिर सात रात्रि-दिन उन्हें रहने दिया। सात रात्रि-दिन के बाद उस पानी को दूसरी बार कोरे घड़े में छनवाया और नये घड़ों में डलवाया। डलवा कर उनमें ताजा राख डलवाई और फिर उन्हें लांछित-मुद्रित करवा दिया। सात रात-दिन तक उन्हें रहने दिया। सात रात-दिन रखने के बाद तीसरी बार नवीन घड़ों में वह पानी डलवाया, यावत् सात रात-दिन उसे रहने दिया। . १७-एवं खलु एएणं उवाएणं अंतरा गलावेमाणे अंतरा पक्खिवावेमाणे, अंतरा य विपरिवसावेमाणे विपरिवसावेमाणे सत्तसत्तराइंदिया विपरिवसावेइ। तए णं से फरिहोदए सत्तमसत्तयंसि परिणममाणंसि उदयरयणे जाव यावि होत्थाअच्छे पत्थे जच्चे तणुए फलिहवण्णाभे वण्णेणं उववेए, गंधेणं उववेए, रसेणं उववेए, फासेणं उववेए, आसायणिज्जे जाव सव्विदियगायपल्हायणिजे। . इस तरह से, इस उपाय से, बीच-बीच में गलवाया, बीच-बीच में कोरे घड़ों में डलवाया और बीच-बीच में रखवाया जाता हुआ वह पानी सात-सात रात्रि-दिन तक रख छोड़ा जाता था। तत्पश्चात् वह खाई का पानी सात सप्ताह में परिणत होता हुआ उदकरत्न (उत्तम जल) बन गया। वह स्वच्छ, पथ्य-आरोग्यकारी, जात्य (उत्तम जाति का), हल्का हो गया; स्फटिक मणि के सदृश मनोज्ञ वर्ण से युक्त, मनोज्ञ गंध से युक्त, रस से युक्त और स्पर्श से युक्त, आस्वादन करने योग्य यावत् सब इन्द्रियों तथा गात्र को अति आह्लाद उत्पन्न करने वाला हो गया। १८-तए णं सुबुद्धी अमच्चे जेणेव से उदयरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलंसिआसाएइ, आसइत्तातं उदयरयणं वण्णेणं उववेयं, गंधेणं उववेयं, रसेणं उववेयं, फासेणं उववेयं, आसायणिज्जंजाव सव्विंदियगायपल्हायणिजं जाणित्ता हट्ठतुढे बहूहिं उदगसंभारणिज्जेहिं दव्वेंहिं संभारेइ, संभारित्ता जियसत्तुस्स रण्णो पणियपरियं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी'तुमं च णं देवाणुप्पिया! इमं उदगरयणं गेण्हाहि, गेण्हित्ता जियसत्तुस्स रण्णो भोयणवेलाए उवणेज्जासि।' तत्पश्चात् सुबुद्धि अमात्य उस उदकरल के पास पहुँचा। पहुँचकर हथेली में लेकर उसका आस्वादन किया। आस्वादन करके उसे मनोज्ञ वर्ण से युक्त, गंध से युक्त, रस से युक्त, स्पर्श से युक्त, आस्वादन करने योग्य यावत् सब इन्द्रियों को और गात्र को अतिशय आह्लादजनक जानकर हृष्ट-तुष्ट हुआ। फिर उसने जल को संवारने (सुस्वादु बनाने) वाले द्रव्यों से उसे संवारा-सुस्वादु और सुगंधित बनाया। सँवारकर जितशत्रु राजा के जलगृह के कर्मचारी को बुलवाया। बुलवाकर कहा–'देवानुप्रिय! तुम यह उदकरत्न ले जाओ। इसे ले जाकर राजा जितशत्रु के भोजन की वेला में उन्हें पीने के लिए देना।' १९–तए णं से पाणियघरए सुबुद्धिस्स एयमढे पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता तं उदयरयणं
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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