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________________ २९८] [ज्ञाताधर्मकथा तत्पश्चात् अश्वरूपधारी शैलक यक्ष माकन्दीपुत्रों को पीठ पर आरूढ़ हुआ जान कर सातआठ ताड़ के बराबर ऊँचा आकाश में उड़ा। उड़कर उत्कृष्ट, शीघ्रतावाली देव संबन्धी दिव्य गति से लवणसमुद्र के बीचोबीच होकर जिधर जम्बूद्वीप था, भरतक्षेत्र था और जिधर चम्पानगरी थी, उसी ओर रवाना हो गया। ४३–तए णं सा रयणद्दीव देवया लवणसमुहं तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्ठइ, जंजत्थ तणं वा जाव एडइ, एडित्ता जेणेव पासायवडेंसए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता ते मागंदियदारया पासायवडेंसए अपासमाणी जेणेव पुरच्छिमिल्ले वणसंडे जाव सव्वओसमंता मग्गणगवेसणं करेइ, करित्ता तेसिं मागंदियदारगाणं कत्थइ सुई वा (खुहं वा पउत्तिं वा) अलभमाणी जेणेव उत्तरिल्ले वणसंडे, एवं चेव पच्चथिमिल्ले वि जाव अपासमाणी ओहिं पाउंजइ, पउंजित्ता ते मागंदियदारए सेलएणं सद्धिं लवणसमुदं मझमझेणं वीइवयमाणे वीइवयमाणे पासइ, पासित्ता आसुरुत्ता असिखेडगं गेण्हइ, गेण्हित्ता सत्तट्ठ जाव उप्पयइ, उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए जेणेव मागंदियदारगा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी तत्पश्चात् रत्नद्वीप की देवी ने लवणसमुद्र के चारों तरफ इक्कीस चक्कर लगाकर, उसमें जो कुछ भी तृण आदि कचरा था, वह सब यावत् दूर किया। दूर करके अपने उत्तम प्रासाद में आई। आकर माकन्दीपुत्रों को उत्तम प्रासाद में न देख कर पूर्व दिशा के वनखण्ड में गई। वहाँ सब जगह उसने मार्गणा-गवेषणा की। गवेषणा करने पर उन माकन्दीपुत्रों की कहीं भी श्रुति आदि आवाज, छींक एवं प्रवृत्ति न पाती हुई उत्तर दिशा के वनखण्ड में गई। इसी प्रकार पश्चिम के वनखण्ड में भी गई, पर वे कहीं दिखाई न दिये। तब उसने अवधिज्ञान का प्रयोग किया। प्रयोग करके उसने माकन्दीपुत्रों को शैलक के साथ लवणसमुद्र के बीचों-बीच होकर चले जाते देखा। देखते ही वह तत्काल क्रुद्ध हुई। उसने ढाल-तलवार ली और सातआठ ताड़ जितनी ऊँचाई पर आकाश में उड़कर उत्कृष्ट एवं शीघ्र गति करके जहाँ माकन्दीपुत्र थे वहाँ आई। आकर इस प्रकार कहने लगी __४४-'हं भो मागंदियदारगा! अपत्थियपत्थिया! किं णं तुब्भे जाणह ममं विप्पजहाय सेलएणंजक्खेणं सद्धिं लवणसमुदं मझमझेणं वीईवयमाणा? तं एवमविगए जइ णं तुब्भे ममं अवयक्खह तो भे अत्थि जीवियं, अहण्णं णावयक्खह तो भे इमेण नीलुप्पलगवल जाव एडेमि। 'अरे माकन्दी के पुत्रो! अरे मौत की कामना करने वालो! क्या तुम समझते हो कि मेरा त्याग करके, शैलकयक्ष के साथ, लवणसमुद्र के मध्य में होकर तुम चले जाओगे? इतने चले जाने पर भी (इतना होने पर भी) अगर तुम मेरी अपेक्षा रखते हो तो तुम जीवित रहोगे, और यदि तुम मेरी अपेक्षा न रखते होओ तो इस नील कमल एवं भैंस के सींग जैसी काली तलवार से यावत् तुम्हारा मस्तक काट कर फैंक दूंगी।' ४५-तए णं ते मागंदियदारए रयणद्दीवदेवयाए अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म अभीया अतत्था अणुव्विग्गा अक्खुभिया असंभन्ता रयणद्दीवदेवयाए एयमटुं नो आदति, नो परियाणंति, नो अवेक्खंति, अणाढायमाणा अपरियाणमाणा अणवेक्खमाणा सेलएण जक्खेण सद्धिं लवणसमुदं मझमझेणं वीइवयंति।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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