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________________ नवम अध्ययन : माकन्दी] [२८५ य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा, ताहे अकामा चेव एयमठें अणुजाणित्था। तत्पश्चात् माता-पिता जब उन माकन्दीपुत्रों को सामान्य कथन और विशेष कथन के द्वारा सामान्य या विशेष रूप से समझाने में समर्थ न हुए, तब इच्छा न होने पर भी उन्होंने उस बात कीसमुद्रयात्रा की अनुमति दे दी। ८-तएणंतेमागंदियदारगाअम्मापिऊहिंअब्भणुण्णायासमाणागणिमंचधरिमंच मेज्जं च पारिच्छेज्जं च जहा अरहण्णगस्स जाव लवणसमुदं बहूइंजोयणसयाइं ओगाढा। तए णं तेसिं मागंदियदारगाणं अणेगाइंजोयणसयाई ओगाढाणं समाणाणं अणेगाइं उप्पाइयसयाइं पाउब्भूयाइं। तत्पश्चात् वे माता-पिता की अनुमति पाये हुए माकंदीपुत्र गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य-चार प्रकार का माल जहाज में भर कर अर्हन्नक की भाँति लवणसमुद्र में अनेक सैकड़ों योजन तक चले गये। तत्पश्चात् उन माकन्दीपुत्रों के अनेक सैकड़ों योजन तक अवगाहन कर जाने पर सैकड़ों उत्पात (उपद्रव) उत्पन्न हुए। ९-तंजहा-अकाले गज्जियंजाव(अकाले विज्जुए, अकाले) थणियसद्दे कालियवाए तत्थ समुट्ठिए। . वे उत्पात इस प्रकार थे-अकाल में गर्जना होने लगी, अकाल में बिजली चमकने लगी, अकाल में स्तनित शब्द (गहरी मेघगर्जना की ध्वनि) होने लगी। प्रतिकूल तेज हवा (आँधी) चलने लगी। नौका-भंग १०-तए णं सा णावा तेणं कालियवाएणं आहुणिज्जमाणी आहुणिज्जमाणी संचालिजमाणी संचालिजमाणी संखोभिज्जमाणी संखोभिज्जमाणी सलिल-तिक्ख-वेगेहिं आयट्टिज्जमाणी आयट्टिज्जमाणी कोट्टिमंसि करतलाहते विव तेंदूसए तत्थेव तत्थेव ओवयमाणी य उप्पयमाणी य, उप्पयमाणीविव धरणीयलाओ सिद्धविन्जाविजाहरकन्नगा, ओवयमाणीविव गगणतलाओ भट्ठविजा विजाहरकनगा, विपलायमाणीविव महागरुलवेगवित्तासिया भुयगवरकन्नगा, धावमाणीवि महाजणरसियसद्दवित्तत्था ठाणभट्ठा आसकिसोरी, णिगुंजमाणीविव गुरुजणादिट्ठावराहा सुयण-कुलकन्नगा, घुम्ममाणीविव वीची-पहार-सत-तालिया,गलियलंबणाविव गगणतलाओ, रोयमाणीविव सलिलगंठि-विप्पइरमाणघोरंसुवाएहिं णववहू उवरतभत्तुया, विलवमाणीविव परचक्करायाभिरोहिया परममहब्भयाभिदुयया महापुरवरी, झायमाणीविव कवडच्छोमप्पओगजुत्ता चोगपरिव्वाइया, णिसासमाणीविव महाकंतारविणिग्गयपरिस्संता परिणयवया अम्मया, सोयमाणीविव तवचरण-खीणपरिभोगा चयणकाले देववरवहू, संचुण्णियकट्ठकराव, भग्ग-मेढि-मोडिय-सहस्समाला, सूलाइयवंकपरिमासा, फलहंतर-तडतडेंत-फुटेंत-संधिवियलंत-लोहकीलिया, सव्वंग-वियंभिया, परिसडिय-रज्जु विसरंत-सव्वगत्ता, आमगमल्लगभूया, अकयपुण्ण-जणमणोरहो विव चिंतिज्जमाणागुरुई, हाहाकय-कण्णधार-नाविय-वाणियगजण-कम्मगार-विलविया, णाणाविह-रयण-पणियसंपुण्णा, बहूहिं पुरिस-सएहिं रोयमाणेहिं कंदमणेहिं सोयमाणेहिं तिप्पमाणेहिं विलवमाणेहिं एगं महं अंतोजलगयं गिरिसिहरमासायइत्ता संभग्गकूवतोरणा मोडियझयदंडा वलयसयखंडिया
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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