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________________ २८२] [ ज्ञाताधर्मकथा शैलक यक्ष ने उनकी प्रार्थना स्वीकार तो की किन्तु एक शर्त के साथ। उसने कहा- 'रत्नदेवी अत्यन्त पापिनी, चण्डा, रौद्रा, क्षुद्रा और साहसिका है। जब मैं तुम्हें ले जाऊंगा तो वह अनेक उपद्रव करेगी, ललचाएगी, मीठी-मीठी बातें करेगी। तुम उसके प्रलोभन में आ गए मैं तत्काल अपनी पीठ पर से तुम्हें समुद्र में गिरा दूंगा। प्रलोभन में न आए - अपने मन को दृढ़ रखा तो तुम्हें चम्पा नगरी तक पहुँचा दूंगा। शैलक यक्ष दोनों को पीठ पर बिठाकर लवणसमुद्र के ऊपर होकर चला जा रहा था । रत्नदेवी जब वापिस लौटी और दोनों को वहाँ न देखा तो अवधिज्ञान से जान लिया कि वे मेरे चंगुल से निकल भागे हैं। तीव्र गति से उसने पीछा किया। उन्हें पा लिया । अनेक प्रकार से विलाप किया परन्तु जिनपालित शैलक यक्ष की चेतावनी को ध्यान में रखकर अविचल रहा। उसने अपने मन पर पूरी तरह अंकुश रखा। परन्तु जिनरक्षित का मन डिग गया। शृंगार और करुणाजनक वाणी सुनकर रत्नदेवी के प्रति उसके मन में अनुराग जागृत हो उठा। अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार यक्ष ने उसे पीठ पर से गिरा दिया और निर्दयहृदया रत्नदेवी ने तलवार पर झेल कर उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए। जिनपालित अपने मन पर नियंत्रण रखकर दृढ़ रहा और सकुशल चम्पानगरी में पहुँच गया। पारिवारिक जनों से मिला और माता-पिता की शिक्षा न मानने के लिए पछतावा करने लगा । कथा बड़ी रोचक है। पाठक स्वयं विस्तार से पढ़कर उसके असली भाव - लक्ष्य और रहस्य को हृदयंगम करें।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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