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(१५) अन्नविहिं-अन्न उत्पन्न करने की कला (१६) पाणविहि-पानी को उत्पन्न करने तथा शुद्ध करने की कला (१७) वत्थविहिं-वस्त्र बनाने की कला (१८) सयणविहिं-शय्या निर्माण करने की कला (१९) अजं-संस्कृत भाषा में कविता निर्माण की कला (२०) पहेलियं-प्रहेलिका निर्माण की कला (२१) मागहियं-छन्द विशेष बनाने की कला (२२) गाहं-प्राकृत भाषा में गाथा निर्माण की कला (२३) सिलोगं-श्लोक बनाने की कला (२४) गंधजुत्तिं-सुगंधित पदार्थ बनाने की कला (२५) मधुसित्थं-मधुरादि छह रस संबंधी कला (२६) आभरणविहि-अलंकार निर्माण व धारण की कला (२७) तुरुणीपडिकम्मं-स्त्री को शिक्षा देने की कला (२८) इत्थीलक्खणं-स्त्री के लक्षण जानने की कला (२९) पुरिसलक्खणं-पुरुष के लक्षण जानने की कला (३०) हयलक्खणं-घोड़े के लक्षण जानने की कला (३१) गयलक्खणं-हस्ती के लक्षण जानने की कला (३२) गोलक्खणं-गाय के लक्षण जानने की कला (३३) कुक्कुडलक्खणं-कुक्कुट के लक्षण जानने की कला (३४) मिंढियलक्खणं-मेंढे के लक्षण जानने की कला (३५) चक्कलक्खणं-चक्र के लक्षण जानने की कला (३६) छत्रलक्खणं-छत्र के लक्षण जानने की कला (३७) दण्डलक्खणं-दण्ड के लक्षण जानने की कला (३८) असिलक्खणं-तलवार के लक्षण जानने की कला (३९) मणिलक्खणं-मणि के लक्षण जानने की कला (४०) कागणिलक्खणं-काकिणी-चक्रवर्ती के रत्न विशेष के लक्षण जानने की कला (४१) चम्मलक्खणं-चर्म लक्षण जानने की कला (४२) चंदलक्खणं-चन्द्र लक्षण जानने की कला (४३) सूरचरियं-सूर्य आदि की गति जानने की कला (४४) राहुचरियं-राहु आदि की गति जानने की कला
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