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शब्दगत, गंधगत, रूपगत, रसगत और स्पर्शगत । क्योंकि ये ही मुख्य इन्द्रियों के विषय हैं और इन्हीं की दोहदों में पूर्ति की जाती है। प्राचीन साहित्य में जितने भी दोहद आये हैं, उन सभी का समावेश इन पांचों में हो जाता है। वैदिक वाङमय में. बौद्ध जातक साहित्य में और जैन कथा साहित्य में दोहद उत्पत्ति और उसकी पति के अनेक प्रसंग मिलते हैं। चरक आदि में भी इस पर विस्तार से चर्चा है।
प्राचीन ग्रन्थों के आधार से पाश्चात्य चिन्तक डॉ. ब्लूमफील्ड' आदि ने दोहद के सम्बन्ध में कुछ चिन्तन किया है। कला : एक विश्लेषण
व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के सर्वांगीण विकास हेतु शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक माना गया था। प्राचीन शिक्षापद्धति का उद्देश्य था चरित्र का संगठन, व्यक्तित्वनिर्माण, संस्कृति की रक्षा, सामाजिक धार्मिक कर्तव्यों को सम्यक् प्रकार से पालन करना। जब मेघकुमार आठ वर्ष का हो गया तब शुभ नक्षत्र और श्रेष्ठ लग्न में उसे कलाचार्य के पास ले जाया गया। प्राचीन युग में शिक्षा का प्रारम्भ आठ वर्ष में माना गया, क्योंकि तब तक बालक का मस्तिष्क शिक्षा ग्रहण करने के योग्य हो जाता था। भगवती और अन्य आगमों में भी इसी उम्र का उल्लेख है। कथाकोश-प्रकरण, ज्ञानपंचमी कथा, कुवलयमाला आदि में भी इसी उम्र का उल्लेख है। स्मृतियों में पाँच वर्ष की उम्र में शिक्षा देने का उल्लेख है। पर आगमों में आठ वर्ष ही बताया है।
उस युग में विविध कलाओं का गहराई से अध्ययन कराया जाता था। पुरुषों के लिए बहत्तर कलाएँ और स्त्रियों के लिए चौसठ कलाएँ थीं। केवल ग्रन्थों से ही नहीं, उन्हें अर्थ और प्रयोगात्मक रूप से भी सिखलाया जाता था। वे कलाएँ मानव की ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों के पूर्ण विकास के लिए अत्यन्त उपयोगी थीं। मानसिक विकास उच्चतम होने पर भी शारीरिक विकास यदि न हो तो उसके अध्ययन में चमत्कृति पैदा नहीं हो सकती।
___प्रस्तुत आगम में बहत्तर कलाओं का उल्लेख हुआ है। बहत्तर कलाओं के नाम समवायांग, राजप्रश्नीय, औपपातिक और कल्पसूत्र सुबोधिका टीका में भी प्राप्त होते हैं। पर ज्ञातासूत्र में आई हुई कलाओं के नामों में और उन आगमों में आये हुए नामों में कुछ अन्तर है। तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन करने हेतु हम यहाँ दे रहे हैं।
___ ज्ञातासूत्र के अनुसार--(१) लेख (२) गणित (३) रूप (४) नाट्य (५) गीत (६) वादित्र (७) स्वरगतं (८) पुष्करगत (९) समताल (१०) द्यूत (११) जनवाद (१२) पाशक (पासा) (१३) अष्टापद (१४) पुरःकाव्य (१५) दकमृत्तिका (१६) अन्नविधि (१७) पानविधि (१८) वस्त्रविधि (१९) विलेपनविधि (२०) शयनविधि (२१) आर्या (२२) प्रहेलिका (२३) मागधिका (२४) गाथा (२५) गीति (२६) श्लोक (२७) हिरण्ययुक्ति (२८) स्वर्णयुक्ति (२९) चूर्णयुक्ति (३०) आभरणविधि (३१) तरुणीप्रतिकर्म (३२)
$. The Dohado or Craving of Pregnant women
- Journal of American Oriental Society. Vol IX Part Ist, Page 1-24. २. भगवती-अभयदेव वृत्ति ११.११, ४२९, पृ. ९९९. ३. कथाकोष प्रकरण पृ.८ ४. ज्ञानपंचमी कहा ६.९२ ५. कुवलयमाला २१, १२-१३ ६. (क) डी.सी. दासगुप्त 'द जैन सिस्टम आफ एजुकेशन' पृ.७४
(ख) एच.आर. कापडिया'द जैन सिस्टम आफ एजुकेशन' पृ. २०६ ७. ज्ञातासूत्र पृ. ४८ (प्रस्तुत संस्करण)
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