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________________ २५०] [ज्ञाताधर्मकथा श्रेष्ठ राजकन्या मल्ली का उसी के अनुरूप चित्र बना था, उसी ओर जाने लगा। उस समय मल्लदिन कुमार ने विदेह की उत्तम राजकुमारी मल्ली का, उसके अनुरूप बना हुआ चित्र देखा। देख कर उसे इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ–'अरे, यह तो विदेहवर-राजकन्या मल्ली है!' यह विचार आते ही वह लज्जित हो गया, व्रीडित हो गया और व्यर्दित हो गया, अर्थात् उसे अत्यन्त लज्जा उत्पन्न हुई। अतएव वह धीरे-धीरे वहाँ से हट गया-पीछे लौट गया। १०१-तए णं मल्लिदिन्नं अम्मधाई पच्चोसक्कंतं पासित्ता एवं वयासी-'किं णं तुम पुत्ता! लज्जिए वीडिए विअडे सणियं सणियं पच्चोसक्कइ?' तए णं से मलदिने अम्मधाई एवं वयासी-'जुत्तं णं अम्मो ! मम जेट्टाए भगिणीए गुरुदेवभूयाए लजणिज्जाए मम चित्तगरणिव्वत्तियं सभं अणुपविसित्तए?' तत्पश्चात् हटते हुए मल्लदिन्न को देख कर धाय माता ने कहा-'हे पुत्र! तुम लज्जित, व्रीडित और व्यर्दित होकर धीरे-धीरे हट क्यों रहे हो?' तब मल्लदिन्न ने धाय माता से इस प्रकार कहा-'माता! मेरी गुरु और देवता के समान ज्येष्ठ भगिनी के, जिससे मुझे लज्जित होना चाहिए, सामने, चित्रकारों की बनाई इस सभा में प्रवेश करना क्या योग्य है?' १०२-तए णं अम्मधाई मल्लदिन्ने कुमारे एवं वयासी-'नो खलु पुत्ता! एस मल्ली विदेहवररायकन्ना चित्तगरएणं तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तिए।' तए णं मल्लदिन्ने कुमारे अम्मधाईए एयमढे सोच्चा णिसम्म आसुरुत्ते एवं वयासी'केसणं भो! चित्तयरए अप्पत्थियपत्थिए जाव[दुरंतपंतलक्खणे हीणपुण्ण-चाउद्दसीए सिरिहिरि-धिइ-कित्ति-] परिवज्जिए जेण ममं जेट्टाए भगिणीए गुरुदेवभूयाए जाव निव्वत्तिए? त्ति कटु तं चित्तगरं वझं आणवेइ।' धाय माता ने मल्लदिन कुमार से इस प्रकार कहा-'हे पुत्र! निश्चय ही यह साक्षात् विदेह की उत्तम कुमारी मल्ली नहीं है किन्तु चित्रकार ने उसके अनुरूप (हूबहू) चित्रित की है-उसका चित्र बनाया है।' तब मल्लदिन कुमार धाय माता के इस कथन को सुन कर और हृदय में धारण करके एकदम क्रुद्ध हो उठा और बोला-'कौन है वह चित्रकार मौत की इच्छा करने वाला, यावत् [कुलक्षणी, हीन काली चतुर्दशी का जन्मा एवं लज्जा बुद्धि आदि से रहित] जिसने गुरु और देवता के समान मेरी ज्येष्ठ भगिनी का यावत् यह चित्र बनाया है?' इस प्रकार कह कर उसने चित्रकार का वध करने की आज्ञा दे दी। १०३-तए णं सा चित्तगरसेणी इमीसे कहाए लट्ठा समाणा जेणेव मल्लदिने कुमारे तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं जाव वद्धावेइ, वद्धावित्ता एवं वयासी ___ 'एवं खलु सामी! तस्स चित्तगरस्स इमेयारूवा चित्तगरलद्धी लद्ध पत्ता अभिसमन्नागया, जस्स णं दुपयस्स वा जाव' णिव्वत्तेति, तं मा णं सामी! तुब्भे तं चित्तगरं वझं आणवेह। तं तुब्भे १. अष्टम अ. १६
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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