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आठवाँ अध्ययन : मल्ली]
[२४९ ९८-तए णं से चित्तगरदारए मल्लीए जवणियंतरियाए जालंतरेण पायंगुटुं पासइ।
तएणं तस्स चित्तगरस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पजित्था सेयं खलु ममं मल्लीए वि पायंगुट्ठाणुसारेणं सरिसगंजाव गुणोववेयं रूवं निव्वत्तित्तए, एवं संपेहेइ, संपेहित्ता भूमिभागं सजेइ, सजित्ता मल्लीए वि पायंगुट्ठाणुसारेणं जाव निव्वत्तेइ।
__ उस समय एक बार उस लब्धि-सम्पन्न चित्रकारदारक ने यवनिका-पर्दे की ओट में रही हुई मल्ली कुमारी के पैर का अंगूठा जाली (छिद्र) में से देखा
तत्पश्चात् उस चित्रकारदारक को ऐसा विचार उत्पन्न हुआ, यावत् मल्ली कुमारी के पैर के अंगूठे के अनुसार उसका हूबहू यावत् गुणयुक्त-सुन्दर पूरा चित्र बनाना चाहिए। उसने ऐसा विचार किया। विचार करके भूमि के हिस्से को ठीक किया। ठीक करके मल्ली के पैर के अंगूठे का अनुसरण करके यावत् पूर्ण चित्र बना दिया।
९९-तए णं सा चित्तगरसेणी चित्तसभं हाव-भाव-विलास-विव्वोय-कलिएहिं रूवेहिं चित्तेइ, चित्तित्ता जेणेव मल्लदिन्ने कुमारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव एयमाणत्तियं पच्च-प्पिण्णति।
तए णं मल्लदिने चित्तगरसेणिं, सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दलेइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ।
तत्पश्चात् चित्रकारों की उस मण्डली (जाति) ने चित्रसभा को यावत् हाव, भाव, विलास और बिब्बोक से चित्रित किया। चित्रित करके जहाँ मल्लदिन्न कुमार था, वहाँ गई। जाकर यावत् कुमार की आज्ञा वापिस लौटाई-आज्ञानुसार कार्य हो जाने की सूचना दी।
तत्पश्चात् मल्लदिन्न कुमार ने चित्रकारों की मण्डली का सत्कार किया, सम्मान किया, सत्कार-सम्मान करके जीविका के योग्य विपुल प्रीतिदान दिया। दे करके विदा कर दिया।
१००-तएणंमल्लदिन्ने कुमारे अन्नया ण्हाए अंतउरपरियालसंपरिवुडे अम्मधाईए सद्धिं जेणेव चित्तसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चित्तसभं अणुपविसइ। अणुपविसित्ता हावभाव-विलास-बिब्बोय-कलियाई रूवाइं पासमाणे पासमाणे जेणेव मल्लीए विदेहवररायकनाए तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
तएणं से मल्लदिन्ने कुमारेमल्लीए विदेहवररायकन्नाए तयाणुरूवं रूवं निव्वत्तियंपासइ, पासित्ता इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था-'एसणं मल्ली विदेहवररायकन्न'त्ति कटु लज्जिए वीडिए विअडे सणियं सणियं पच्चोसक्कइ।
तत्पश्चात् किसी समय मल्लदिन्न कुमार स्नान करके, वस्त्राभूषण धारण करके अन्तःपुर एवं परिवार सहित, धायमाता को साथ लेकर जहाँ चित्रसभा थी, वहाँ आया। आकर चित्रसभा के भीतर प्रवेश किया। प्रवेश करके हाव, भाव, विलास और बिब्बोक से युक्त रूपों (चित्रों) को देखता-देखता जहाँ विदेह की