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________________ स्वप्नों का फल छह महीने में, तृतीय प्रहर के स्वप्नों का फल तीन महीने और चतुर्थ प्रहर में जब मुहूर्त भर रात्रि अवशेष रहती है उस समय जो स्वप्न दिखाई देता है उसका फल दस दिनों में मिलता है। सूर्योदय के स्वप्न का फल बहुत ही शीघ्र मिलता है। जो स्वप्नपंक्ति देखते हैं या दिन में स्वप्न देखते हैं या मल-मूत्र आदि की व्याधि के कारण जो स्वप्न देखते हैं, वे स्वप्न सार्थक नहीं होते। पश्चिम रात्रि में शुभ स्वप्न देखने का एक ही कारण यह भी हो सकता है कि थका हुआ मन तीन प्रहर तक गहरी निद्रा आने के कारण प्रशान्त हो जाता है। उसकी चंचलता मिट जाती है। ताजगी उसमें होती है और स्थिरता भी। अतः उस समय देखे गये स्वप्न शीघ्र फल प्रदान करते हैं। शुभ स्वप्न देखने के बाद स्वप्नद्रष्टा को नहीं सोना चाहिए। क्योंकि स्वप्नदर्शन के पश्चात् नींद लेने से उस स्वप्न का फल नष्ट हो जाता है। जो अशुभ स्वप्न हों उनको देखने के बाद सो सकते हैं, जिससे उनका अशु फल नष्ट हो जाय। शुभ स्वप्न आने के पश्चात् धर्मचिन्तन करना चाहिए। रात्रि में सोते समय प्रसन्न होना चाहिए। मन में किसी प्रकार की वासनाएँ या उत्तेजनाएँ नहीं होनी चाहिए। नमस्कार महामंत्र जपते हुए या प्रभुस्मरण करते हुए जो निद्रा आती है, उसमें अशुभ स्वप्न नहीं आते, उसे अच्छी निद्रा आती है और श्रेष्ठ स्वप्न दिखलायी पड़ते हैं। प्राचीन आचार्यों ने शुभ और अशुभ स्वप्न की एक सूची' दी है। पर वह सूची पूर्ण हो ऐसी बात नहीं है। उनके अतिरिक्त भी कई तरह के स्वप्न आते हैं। उन स्वप्नों का सही अर्थ जानने के लिए परिस्थिति, वातावरण और व्यक्ति की अवस्था देखकर ही निर्णय करना चाहिए। विशिष्ट व्यक्तियों की माताएँ जो स्वप्न निहारती हैं उनके अन्तर्मानस की उदात्त आकाँक्षाएँ उसमें रहती हैं। वे सोचती हैं कि मेरे ऐसा दिव्य पुत्र हो जो दिग्दिगन्त को अपनी यशोगाथा से गौरवान्वित करे। उसकी पवित्र भावना के कारण इस प्रकार के पुत्र आते भी हैं। यह अवश्य स्मरण रखना चाहिए कि स्वप्न वस्तुतः स्वप्न ही है। स्वप्न पर अत्यधिक विश्वास कर यथार्थता से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए। केवल स्वप्नद्रष्टा नहीं, यथार्थद्रष्टा बनना चाहिए। यह तो केवल सूचना प्रदान करने वाला है। दोहद : एक अनुचिन्तन ___ प्रस्तुत अध्ययन में मेघकुमार की माता धारिणी को यह दोहद उत्पन्न होता है कि आकाश में उमड़घुमड़ कर घटाएँ आयें, हजार-हजार धारा के रूप में वह बरस पड़ें। आकाश में चारु चपला की चमक हो। चारों ओर हरियाली लहलहा रही हो, रंगबिरंगे फूल महक रहे हों, मेघ की गंभीर गर्जना को सुनकर मयूर केकारव के साथ नृत्य कर रहे हों और कलकल और छलछल करते हुए नदी-नाले बह रहे हों, मेंढकों की टर्-टर् ध्वनि हो रही हो। उस समय मैं अपने पति सम्राट् श्रेणिक के साथ हस्ती-रत्न पर आरूढ़ होकर राजगृह नगर के उपवन वैभारगिरि में पहुँचकर आनन्द क्रीड़ा करूं। पर वह ऋतु वर्षा की नहीं थी, जिससे दोहद की पूर्ति हो सके । दोहद की पूर्ति न होने से महारानी मुरझाने लगी। महाराजा श्रेणिक उसके मुरझाने के कारण को समझकर अभयकुमार के द्वारा महारानी के दोहद की पूर्ति करवाते हैं। दोहद की इस प्रकार की घटनाएँ आगम साहित्य में अन्य स्थलों पर भी आई हैं। जैनकथासाहित्य में, १. भगवती सूत्र १६-६ २. विपाक सूत्र-३; कहाकोसु सं. १६; गाहा सतसई प्र. शतक गा १-१५, -३-९०२५-७२; श्रेणिक चरित्र; उत्तरा. टीका १३२, आवश्यक-चूर्णि २ पृ. १६६ निरियावलिका १, पृ. ९-११, पिण्डनियुक्ति ८०; व्यवहारभाष्य १, ३, पृ. १६;
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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