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आठवां अध्ययन : मल्ली]
[२२७ पडिवालेमाणा चिट्ठह।' तए णं ते कोडंबिया जाव चिटुंति।
___ 'निश्चय ही पद्मावती देवी के यहाँ कल नागपूजा होगी। अतएव हे देवानुप्रियो ! तुम जल और स्थल में उत्पन्न हुए पांचों रंगों के ताजा फूल नागगृह में ले जाओ और एक श्रीदामकाण्ड (शोभित मालाओं का समूह) बना कर लाओ। तत्पश्चात् जल और स्थल में उत्पन्न होने वाले पांच वर्षों के फूलों से विविध प्रकार की रचना करके उसे सजाओ। उस रचना में हंस, मृग, मयूर, क्रौंच, सारस, चक्रवाक, मदनशाल (मैना) और कोकिलों के समूह से युक्त तथा ईहामृग, वृषभ, तुरग आदि की रचना वाले चित्र बनाकर महामूल्यवान्, महान् जनों के योग्य और विस्तार वाला एक पुष्पमंडप बनाओ। उस पुष्पमंडप के मध्य भाग में एक महान् और गंध के समूह को छोड़ने वाला श्रीदामकाण्ड उल्लोच (छत) पर लटकाओ। लटकाकर पद्मावती देवी की राह देखते-देखते ठहरो।' तत्पश्चात् वे कौटुम्बिक पुरुष इसी प्रकार कार्य करके यावत् पद्मावती की राह देखते हुए नागगृह में ठहरते हैं।
__४२-तएशंसा पउमावई देवी कल्लं' कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सदावित्ता एवंवयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सागेयं नगरं सब्भितरबाहिरियं आसित्त-सम्मज्जियोवलितं जाव' पच्चप्पिणंति।
. तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने दूसरे दिन प्रात:काल सूर्योदय होने पर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा-हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही साकेत नगर में भीतर और बाहर पानी सींचो, सफाई करो और लिपाई करो यावत् (सुगंधित करो, सुगंध की गोली जैसा बना दो।) वे कौटुम्बिक पुरुष उसी प्रकार कार्य करके आज्ञा वापिस लौटाते हैं।
४३-तए णं सा पउमावई देवी दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ सहावित्ता एवं वयासी-'खिप्पामेव देवाणुप्पिया ! लहुकरणजुत्तं जाव' जुत्तामेव उवट्ठवेह'। तए णं ते वि तहेव उवट्ठवेंति।
तंए णं सा पउमावई अंतो अंतेउरंसि बहाया जाव धम्मियं जाणं दुरूढा।
तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने दूसरी बार कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा 'देवानुप्रियो! शीघ्र ही लघुकरण से युक्त (द्रुतगामी अश्व वाले) यावत् रथ को जोड़कर उपस्थित करो।' तब वे भी उसी प्रकार रथ उपस्थित करते हैं।
तत्पश्चात् पद्मावती देवी अन्तःपुर के अन्दर स्नान करके यावत् [बलिकर्म, कौतुक, मंगल], प्रायश्चित करके धार्मिक (धर्मकार्य के लिए काम में आने वाले) यान पर अर्थात् रथ पर आरूढ़ हुई।
४४-तए णं सा पउमावई नियगपरिवालसंपरिवुडा सागेयं नगरं मझमझेणं णिजइ, णिजित्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता पुक्खरिणिं ओगाहेइ।ओगाहित्ता जलमजणं जाव[करेइ, करित्ता जलकीडं करेइ, करेत्ता ण्हाया कयबलिकम्मा] परम-सुइभूया उल्लपडसाडया जाइं तत्थ उप्पलाइं जाव [ पउमाइं कुमुयाइं णलिणाई सुभगाइं सोगंधियाई पोंडरीयाइं महापोंडरीयाई सयपत्ताई सहस्सपत्ताई ताइं] गेण्हइ। गेण्हित्ता जेणेव नागघरए तेणेव १. प्र. अ. १४ २. प्र. अ. ७७ ३. उपासकदशा १ ४. प्र. अ. ८०