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________________ आठवाँ अध्ययनः मल्ली सार : संक्षेप प्रस्तुत अध्ययन का कथानक महाविदेह क्षेत्र से प्रारंभ होता है, किन्तु उसकी अन्तिम परिणति भरत क्षेत्र में हुई है। इसमें वर्तमान अवसर्पिणी काल के उन्नीसवें तीर्थंकर, अथवा कहना चाहिए तीर्थंकरी भगवती मल्ली का उद्बोधक जीवन अंकित किया गया है। पाठकों की सुविधा के लिए उसका संक्षिप्त सार-स्वरूप इस प्रकार है महाविदेह क्षेत्र सलिलावती विजय की राजधानी वीतशोका थी। वहाँ के राजा का नाम बल था। किसी समय राजधानी में स्थविरों का आगमन हुआ। धर्मदेशना श्रवण करके राजा बल अपना सुखद राज्य और सहस्र राजरानियों की मोह-ममता त्याग कर मुनिधर्म में दीक्षित हो गया। तीव्र तपश्चर्या करके समस्त कर्मों को ध्वस्त कर मुक्त हुआ। बल राजा का उत्तराधिकारी उनका पुत्र महाबल हुआ। अचल, धरण आदि अन्य छह राजा उसके परम मित्र थे, जो साथ-साथ जन्मे, खेले और बड़े हुए थे। उन्होंने निश्चय किया था कि सुख में, दुःख में, विदेशयात्रा में और दीक्षा में हम एक दूसरे का साथ देंगे। एक बार महाबल संसार से विरक्त होकर मुनि-दीक्षा लेने को तैयार हए तो उनके साथी भी अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तैयार हो गए। सभी ने उत्कृष्ट साधना कीघोर तपश्चर्या की और जयन्त नामक अनुत्तर विमान में देवपर्याय में जन्म लिया। इस बीच एक अनहोनी घटित हो गई। साधु-अवस्था में महाबल मुनि के मन में कपटभाव उत्पन्न हो गया। सातों मनियों का एक-सी तपस्या करने का निश्चय था, मगर छह मुनि चतुर्थभक्त करते तो महाबल षष्टभक्त कर लेते। वे षष्ठभक्त करते तो महाबल अष्टमभक्त कर लेते। इस तपस्या का फल यह हुआ कि छह मुनियों को देव-पर्याय में किंचित् न्यून बत्तीस सागरोपम की आयु प्राप्त हुई तो महाबल मुनि को पूर्ण बत्तीस सागरोपम की स्थिति प्राप्त हो गई। साथ ही उन्होंने तीर्थंकर-नामकर्म का बन्ध किया। किन्तु कोई राजा हो या रंक, महामुनि या सामान्य गृहस्थ, कर्म किसी का लिहाज नहीं करते। कपट-सेवन के फलस्वरूप महाबल ने स्त्रीनामकर्म का बन्ध कर लिया। जयन्त विमान से जब वे च्युत होकर मनुष्य-पर्याय में अवतरित हुए तो उन्हें इसी भरतक्षेत्र में मिथिला-नरेश कुंभ की महारानी प्रभावती के उदर से कन्या के रूप में जन्म लेना पड़ा। उसका नाम 'मल्ली' रक्खा गया। तीर्थंकरों का जन्म पुरुष के रूप में होता है किन्तु मल्ली कुमारी का जन्म महिला के रूप में होना जैन इतिहास की एक अद्भुत और आश्चर्यजनक घटना है। मल्ली कुमारी के छह अन्य साथी इससे पूर्व ही विभिन्न प्रदेशों में जन्म ले कर अपने-अपने प्रदशों के राजा बन चुके थे। उनके नाम इस प्रकार हैं (१) प्रतिबुद्धि-इक्ष्वाकुराज, (२) चन्द्रच्छाया-अंग देश का राजा,
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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