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________________ २०४] [ज्ञाताधर्मकथा तं हत्थंसि दलयामि, से णूणं पुत्ता! अढे समढे?' 'हंता, अत्थि।' 'तं णं पुत्ता! मम ते सालिअक्खए पडिनिजाएहि।' 'हे पुत्री! अतीत-विगत पांचवें संवत्सर में अर्थात् अब से पांच वर्ष पहले इन्हीं मित्रों ज्ञातिजनों आदि तथा चारों पुत्रवधुओं के कुलगृहवर्ग के समक्ष मैंने तुम्हारे हाथ में पांच शालि-अक्षत दिये थे और कहा था कि-हे पुत्री! जब मैं ये पांच शालिअक्षत मांगू, तब तुम मेरे ये पांच शालिअक्षत मुझे वापिस सौंपना। तो यह अर्थ समर्थ है--यह बात सत्य है?' उज्झिका ने कहा-'हाँ, सत्य है।' धन्य सार्थवाह बोले-'तो हे पुत्री! मेरे वह शालिअक्षत वापिस दो।' १८-तए णं उझिया एयमटुं धण्णस्स सत्थवाहस्स पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता जेणेव कोट्ठागारं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पल्लाओ पंच सालिअक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव धण्णे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छिता धण्णं, सत्थवाहं एवं वयासी-'एए णं पंच सालिअक्खए'त्ति कट्ट, धण्णस्स सत्थवाहस्स हत्थंसि ते पंच सालिअक्खए दलयइ। तएणं धण्णे सत्थवाहे उज्झियं सवहसावियं करेइ, करित्ता एवं वयासी-किंणं पुत्ता! एए चेव पंच सालिअक्खए उदाहु अन्ने ?' तत्पश्चात् उज्झिका ने धन्य सार्थवाह की यह बात स्वीकार की। स्वीकार करके जहाँ कोठार था वहाँ पहुँच कर पल्य में से पाँच शालिअक्षत ग्रहण किये और ग्रहण करके धन्य सार्थवाह के समीप आकर बोली'ये हैं वे पाँच शालिअक्षत।' यों कहकर धन्य सार्थवाह के हाथ में पाँच शालि के दाने दे दिये। तब धन्य सार्थवाह ने उज्झिका को सौगन्ध दिलाई और कहा-'पुत्री ! क्या वही ये शालि के दाने हैं अथवा ये दूसरे हैं ?' १९-तए णं उज्झिया धण्णं सत्थवाहं एवं वयासी–एवं खलु तुब्भे ताओ! इओ अईए पंचमे संवच्छरे इमस्स मित्तणाइ० चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स जाव' विहराहि।' तए णं अहं तुब्भं एयमटुं पडिसुणेमि। पडिसुणिता ते पंच सालिअक्खए गेण्हामि, एंगंतमवक्कमामि।तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था-'एवं खलु तायाणं कोट्ठागारंसि०२ सकम्मसंजुत्ता। तं णो खलु ताओ! ते चेव सालिअक्खए, एए णं अन्ने।' तब उज्झिका ने धन्य सार्थवाह से इस प्रकार कहा-हे तात! इससे पहले के पाँचवें वर्ष में इन मित्रों एवं ज्ञातिजनों के तथा चारों पुत्रवधुओं के कुलगृहवर्ग के सामने पाँच दाने देकर 'इनका संरक्षण, संगोपन और संवर्धन करती हुई विचरना' ऐसा आपने कहा था। उस समय मैंने आपकी बात स्वीकार की थी। स्वीकार करके १. सप्तम अ. सूत्र ६ २. सप्तम अ. सूत्र ७
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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