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पञ्चम अध्ययन : शैलक]
[१८९ अनगारों का मिलन
७०-तए णं ते पंथगवज्जा पंच अणगारसया इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणा अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावित्ता एवं वयासी-'सेलए रायरिसी पंथएणं बहिया जाव विहरइ, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं सेलयं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए।' एवं संपेहेंति, संपेहित्ता सेलयं रायरिसिं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति।
तत्पश्चात् पंथक को छोड़कर पाँच सौ अनगारों (अर्थात् ४९९ मुनियों) ने यह वृत्तान्त जाना। तब उन्होंने एक दूसरे को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा-'शैलक राजर्षि पंथक मुनि के साथ बाहर यावत् उग्र विहार कर रहे हैं तो हे देवानुप्रियो! अब हमें शैलक राजर्षि के समीप चल कर विचरना उचित है।' उन्होंने ऐसा विचार किया। विचार करके राजर्षि शैलक के निकट जाकर विचरने लगे।
७१-तए णं ते सेलगपामोक्खा पंच अणगारसया बहूणि वासाणि सामनपरियागं पाउणित्ता जेणेव पोंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छंति।उवागच्छित्ता जहेव थावच्चापुत्ते तहेव सिद्धा।
___ तत्पश्चात् शैलक प्रभृति पाँच सौ मुनि बहुत वर्षों तक संयमपर्याय पाल कर जहाँ पुंडरीक-शत्रुजय पर्वत था, वहाँ आये। आकर थावच्चापुत्र की भाँति सिद्ध हुए। उपसंहार
७२-एवामेव समणाउसो! जो निग्गंथो वा निग्गंथी वा जाव विहरिस्सइ०, एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं पंचमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पन्नत्तेत्ति बेमि॥
इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणो! जो साधु या साध्वी इस तरह विचरेगा वह इस लोक में बहुसंख्यक साधुओं, साध्वियों, श्रावकों और श्राविकाओं के द्वारा अर्चनीय, वन्दनीय, नमनीय, पूजनीय, सत्करणीय और सम्माननीय होगा। कल्याण, मंगल, देव और चैत्य स्वरूप होगा। विनयपूर्वक उपासनीय होगा।
परलोक में उसे हाथ, कान एवं नासिका के छेदन के, हृदय तथा वृषणों के उत्पाटन के एवं फाँसी आदि के दुःख नहीं भोगने पड़ेंगे। अनादि अनन्त चातुर्गतिक संसार-कान्तार में उसे परिभ्रमण नहीं करना पड़ेगा। वह सिद्धि प्राप्त करेगा।
हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर ने पाँचवें ज्ञात अध्ययन का यह अर्थ कहा है। उनके कथनानुसार मैं कहता हूँ।
॥पंचम अध्ययन समाप्त।