SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चम अध्ययन : शैलक] [१६७ २६-तए णं से थावच्चापुत्ते अन्नया कयाइं अरहं अरिट्ठनेमिं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–'इच्छामिणं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुनाए समाणे सहस्सेणं अणगारेणं सद्धिं बहिया जणवयविहारं विहरित्तए।' 'अहासुहं देवाणुप्पिया!' तत्पश्चात् थावच्चापुत्र ने एक बार किसी समय अरिहन्त अरिष्टनेमि की वंदना की और नमस्कार किया। वन्दना और नमस्कार करके इस प्रकार कहा-'भगवन् ! आपकी आज्ञा हो तो मैं हजार साधुओं के साथ जनपदों में विहार करना चाहता हूँ।' भगवान् ने उत्तर दिया-'देवानुप्रिय! तुम्हें जैसे सुख उपजे वैसा करो।' २७-तए णं से थावच्चापुत्ते अणगारसहस्सेणं सद्धिं ( तेणं उरालेणं उदग्गेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं) बहिया जणवयविहारं विहरइ। ___ भगवान् की अनुमति प्राप्त करके थावच्चापुत्र एक हजार अनगारों के साथ (उस प्रधान, तीव्र प्रयत्न वाले-प्रमादरहित और बहुमानपूर्वक ग्रहण किये हुए चारित्र एवं तप से युक्त होकर) बाहर जनपदों (विभिन्न देशों) में विचरण करने लगे। शैलकं राजा श्रावक बना २८-तेणं कालेणं तेणं समएणं सेलगपुरे नामं नयरे होत्था, सुभूमिभागे उजाणे, सेलए राया, पउमावई देवी, मंडुए कुमारे जुवराया। तस्स णं सेलगस्स पंथगपामोक्खा पंच मंतिसया होत्था, उप्पत्तियाए वेणइयाए पारिणामियाए कम्मियाए चउव्विहाए बुद्धीए उववेया रज्जुधुरचिंतया वि होत्था। तए णं थावच्चापुत्ते अणगारे सहस्सेणं अणगारेणं सद्धिं जेणेव सेलगपुरे जेणेव सुभूमिभागे नामं उज्जाणे तेणेव समोसढे। सेलए वि राया विणिग्गए।धम्मो कहिओ। उस काल और उस समय में शैलकपुर नामक नगर था। उसके बाहर सुभूमिभाग नामक उद्यान था। शैलक वहाँ का राजा था। पद्मावती रानी थी। उनका मंडुक नामक कुमार था। वह युवराज था। उस शैलक राजा के पंथक आदि पाँच सौ मंत्री थे। वे औत्पत्तिकी वैनयिकी पारिणामिकी और कार्मिकी इस प्रकार चारों तरह की बुद्धियों से सम्पन्न थे और राज्य की धुरा के चिन्तक भी थे-शासन का संचालन करते थे। थावच्चापुत्र अनगार एक हजार मुनियों के साथ जहाँ शैलकपुर था और जहाँ सुभूमिभाग नामक उद्यान था, वहाँ पधारे। शैलक राजा भी उन्हें वन्दना करने के लिए निकला। थावच्चापुत्र ने धर्म का उपदेश दिया। २९-धम्म सोच्चा जहाणंदेवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे उग्गा भोगा जाव चइत्ता हिरण्णं जाव पव्वइया, तहाणं अहं नो संचाएमि पव्वइत्तए। तओणं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणु १. चार प्रकार की बुद्धियों का स्वरूप जानने के लिए देखें प्रथम अध्ययन, सूत्र
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy