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________________ १२२] [ ज्ञाताधर्मकथा बालघायए, बालमारए, तं नो खलु देवाणुप्पिया! एयस्स केइ राया वा रायपुत्ते वा रायमच्चे वा अवरज्झइ । एत्थट्ठे अप्पणो सयाई कम्माई अवरज्झंति' त्ति कट्टु जेणामेव चारगसाला तेणामेव उवागच्छंति। उवागच्छित्ता हडिबंधणं करेन्ति, करिता भत्तपाणनिरोहं करेंति, करित्ता तिसझं कसप्पहारे य जाव' निवाएमाणा निवाएमाणा विहरंति । 'हे देवानुप्रियो ! (लोगो !) यह विजय नामक चोर है। यह गीध के समान मांसभक्षी, बालघातक है, बालक का हत्यारा है। हे देवानुप्रियो ! कोई राजा, राजपुत्र अथवा राजा का अमात्य इसके लिए अपराधी नहीं है— कोई निष्कारण ही इसे दंड नहीं दे रहा है। इस विषय में इसके अपने किये कुकर्म ही अपराधी हैं।' इस प्रकार कहकर जहाँ चारकशाला (कारागार) थी, वहाँ पहुँचे, वहाँ पहुँच कर उसे बेड़ियों से जकड़ दिया । भोजन-पानी बंद कर दिया। तीनों संध्याकालों में- प्रातः, मध्याह्न और सूर्यास्त के समय, चाबुकों, छड़ियों और कंबा आदि के प्रहार करने लगे । देवदत्त का अन्तिम संस्कार - ३१ – तए णं से धण्णे सत्थवाहे मित्त-नाइ - नियण-सयण-संबंधि- परियणेणं सद्धिं रोयमाणे कंदमाणे जाव (विलवमाणे) देवदिन्नस्स दारगस्स सरीरस्स महया इड्डीसक्कारसमुदणं नीहरणं करेंति । करित्ता बहूई लोइयाइं मयगकिच्चाई करेंति, करित्ता केइ कालंतरेणं अवगयसोए जाए यावि होत्या । तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह ने मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, संबंधी और परिवार के साथ रोते-रोते, आक्रंदन करते-करते, यावत् विलाप करते-करते बालक देवदत्त के शरीर का महान् ऋद्धि सत्कार के समूह के साथ नीहरण किया, अर्थात् अग्नि-संस्कार के लिये श्मशान में गया। अनेक लौकिक मृतककृत्य - मृतक संबंधी अनेक लोकाचार किये। तत्पश्चात् कुछ समय व्यतीत हो जाने पर वह उस शोक से रहित हो गया । धन्य सार्थवाह का निग्रह ३२ - तए णं से धण्णे सत्थवाहे अन्नया कयाइ लहुसयंसि रायावराहंसि संपलत्ते जाए यावि होत्था। तए णं ते नगरगुत्तिया धण्णं सत्थवाहं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव चारगे तेणेव उवागच्छंति । उवागच्छित्ता चारगं अणुपवेसंति, अणुपवेसित्ता विजएणं तक्करेणं सद्धिं एगयओ हsिबंधणं करेंति । तत्पश्चात् किसी समय धन्य सार्थवाह को चुगलखोरों ने छोटा-सा राजकीय अपराध लगा दिया। तब नगररक्षकों ने धन्य सार्थवाह को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार करके कारागार में ले गये । ले जाकर कारागार में प्रवेश कराया और प्रवेश कराके विजय चोर के साथ एक ही बेड़ी में बाँध दिया। १.द्वि. अ. सूत्र २९
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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