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________________ द्वितीय अध्ययन : संघाट ] [११७ तएणं तस्स दारगस्स अम्मापियरो जायं च दायंच भायं च अक्खयनिहिं च अणुवड्डेन्ति। तत्पश्चात् उस बालक के माता-पिता ने पहले दिन जातकर्म नामक संस्कार किया। करके उसी प्रकार यावत् (दूसरे दिन जागरण, तीसरे दिन चन्द्र-सूर्यदर्शन, आदि लोकाचार किया। सूतक सम्बन्धी अशुचि दूर हो जाने पर बारहवें दिन विपुल) अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार तैयार करवाया। तैयार करवाकर उसी प्रकार मित्र ज्ञाति जनों आदि को भोजन कराकर इस प्रकार का गौण अर्थात् गुणनिष्पन्न नाम रखा-क्योंकि हमारा यह पुत्र बहुत-सी नाग-प्रतिमाओं यावत् [भूत, यक्ष, इन्द्र, स्कन्द, रुद्र, शिव] तथा वैश्रमण प्रतिमाओं की मनौती करने से उत्पन्न हुआ है, इस कारण हमारा यह पुत्र 'देवदत्त' नाम से हो, अर्थात् इसका नाम 'देवदत्त' रखा जाय। तत्पश्चात् उस बालक के माता-पिता ने उन देवताओं की पूजा की, उन्हें दान दिया, प्राप्त धन का विभाग किया और अक्षयनिधि की वृद्धि की, अर्थात् मनौती के रूप में पहले जो संकल्प किया था उसे पूरा किया। पुत्र का अपहरण ___ २१–तए णं से पंथए दासचेडए देवदिन्नस्स दारगस्स बालग्गाही जाए। देवदिन्नं दारयं कडीए गेण्हइ, गेण्हित्ता बहूहिं डिंभएहि य डिंभयाहि य दारएहि य दारियाहि य कुमारेहि य कुमारियाहि य सद्धिं संपरिवुडे अभिरमइ। तत्पश्चात् वह पंथक नामक दास चेटक देवदत्त बालक का बालग्राही (बच्चों को खेलाने वाला) नियुक्त हुआ। वह बालक देवदत्त को कमर में लेता और लेकर बहुत-से बच्चों, बच्चियों, बालकों, बालिकाओं, कुमारों और कुमारियों के साथ, उनसे परिवृत होकर खेलता रहता था। - २२-तए णं सा भद्दा सत्थवाही अन्नया कयाइं देवदिन्नं दारयं ण्हायं कसबलिकम्म कयकोउय-मंगलपायच्छित्तंसव्वालंकारविभूसियंकरेइ।पंथयस्सदासचेडयस्स हत्थयंसिदलयइ। तएणं पंथए दासचेडए भद्दाए सत्थवाहीए हत्थाओ देवदिन्नं दारयंकडीए गेण्हइ, गेण्हित्ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ।पडिणिक्खमित्ता बहूहिं डिंभएहि य डिभियाहि य जाव(दारएहिं दारियाहिं कुमारेहिं) कुमारियाहि यसद्धिं संपरिवुडे जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ।उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं एगंते ठावेइ।ठावित्ता बहूहिं डिंभएहि य जाव कुमारियाहि यसद्धिं संपरिवुडे पमत्ते यावि होत्था विहरइ। तत्पश्चात् भद्रा सार्थवाही ने किसी समय स्नान किये हुए, बलिकर्म, कौतुक, मंगल और प्रायश्चित किये हुए तथा समस्त अलङ्कारों से विभूषित हुए देवदत्त बालक को दास चेटक पंथक के हाथ में सौंपा। पंथक दास चेटक ने भद्रा सार्थवाही के हाथ से देवदत्त बालक को लेकर अपनी कटि में ग्रहण किया। ग्रहण करके वह अपने घर से बाहर निकला। बाहर निकल कर बहुत-से बालकों, बालिकाओं, बच्चों, बच्चिओं, कुमारों और कुमारिकाओं से परिवृत होकर राजमार्ग में आया। आकर देवदत्त बालक को एकान्त में-एक ओर बिठला दिया। बिठला कर बहुसंख्यक बालकों यावत् कुमारिकाओं के साथ, (देवदत्त की ओर से) असावधान होकर खेलने लगा-खेलने में मगन हो गया।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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