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द्वितीय अध्ययन : संघाट]
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एवं विपुल शय्या, आसन, यान तथा वाहन थे, बहुसंख्यक दास, दासी, गायें, भैंसें तथा बकरियां थीं, बहुत धन, सोना एवं चाँदी थी, उसके यहाँ खूब लेन-देन होता था] घर में बहुत-सा भोजन-पानी तैयार होता था।
उस धन्य सार्थवाह की पत्नी का नाम भद्रा था। उसके हाथ पैर सुकुमार थे। पाँचों इन्द्रियाँ हीनता से रहित परिपूर्ण थीं। वह स्वस्तिक आदि लक्षणों तथा तिल मसा आदि व्यंजनों के गुणों से युक्त थी। मान, उन्मान और प्रमाण से परिपूर्ण थी। अच्छी तरह उत्पन्न हुए-सुन्दर सब अवयवों के कारण वह सुन्दरांगी थी। उसका आकार चन्द्रमा के समान सौम्य था। वह अपने पति के लिए मनोहर थी। देखने में प्रिय लगती थी। सुरूपवती थी। मुट्ठी में समा जाने वाला उसका मध्य भाग (कटिप्रदेश) त्रिवलि से सुशोभित था। कुण्डलों से उसके गंडस्थलों की रेखा घिसती रहती थी। उसका मुख पूर्णिमा के चन्द्र के समान सौम्य था। वह श्रृंगार का आगार थी। उसका वेष सुन्दर था। यावत् [उसकी चाल, उसका हँसना तथा बोलना सुसंगत था-मर्यादानुसार था, उसका विलास, आलाप-संलाप, उपचार-सभी कुछ संस्कारिता के अनुरूप था। उसे देखकर प्रसन्नता होती थी। वह वस्तुतः दर्शनीय थी, सुन्दर थी] वह प्रतिरूप थी-उसका रूप प्रत्येक दर्शक को नया-नया ही दिखाई देता था। मगर वह वन्ध्या थी, प्रसव करने के स्वभाव से रहित थी। जानु (घुटनों) और कूर्पर (कोहनी) की ही माता थी, अर्थात् सन्तान न होने से जानु और कूपर ही उसके स्तनों का स्पर्श करते थे या उसकी गोद में जानु और कूपर ही स्थित थे-पुत्र नहीं।
७–तस्सणं धण्णस्स सत्थवाहस्स पंथए नामंदासचेडे होत्था, सव्वंगसुंदरंगे मंसोवचिए बालकीलावणकुसले यावि होत्था।
___ उस धन्य सार्थवाह का पंथक नामक एक दास-चेटक था। वह सर्वांग-सुन्दर था, माँस से पुष्ट था और बालकों को खेलाने में कुशल था।
८-तएणं से धण्णे सत्थवाहे रायगिहे नयरे बहूणं नगरनिगमसेट्ठिसत्थवाहाणं अट्ठारसण्ह य सेणिप्पसेणीणं बहुसु कज्जेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य जाव' चक्खुभूए यावि होत्था। नियगस्स वि य णं कुडुंबस्स बहुसु य कज्जेसु जाव चक्खुभूए यावि होत्था।
यह धन्य सार्थवाह राजगृह नगर में बहुत से नगर के व्यापारियों, श्रेष्ठियों और सार्थवाहों के तथा अठारहों श्रेणियों (जातियों) और प्रश्रेणियों (उपजातियों) के बहुत से कार्यों में, कुटुम्बों में-कुटुम्ब सम्बन्धी विषयों में और मंत्रणाओं में यावत् चक्षु के समान मार्गदर्शक था और अपने कुटुम्ब में भी बहुत से कार्यों में यावत् चक्षु के समान था।
९-तत्थ णं रायगिहे नगरे विजए नामं तक्करे होत्था, पावे चंडालरूवे भीमतररुद्दकम्मे आरुसिय-दित्त-रत्त-नयणे खर-फरुस-महल्ल-विगय-वीभत्थदाढिए असंपुडियउटे उद्धय-पइन्नलंबंत-मुद्धए भमर-राहुवन्ने निरणुक्कोसे निरणुतावे दारुणे पइभए निसंसइए निरणुकंपे अहिव्व एगंतदिट्ठिए, खुरे व एगंतधाराए, गिद्धेव आमिसतल्लिच्छे अग्गिमिव सव्वभक्खी जलमिव सव्वगाही, उक्कंचण-माया-नियडि-कूडकवड-साइ-संपओगबहुले, चिरनगरविण?
१. प्र. अ. सूत्र १५