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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात]
[५५ यदेवे ओवयमाणे उप्पयमाणे पासति।पासित्ता चाउग्घंटाओ आसरहाओ पच्चोरुहति।पच्चोरुहित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छति। तंजहा
(१) सचित्ताणं दव्वाणं विउसरणयाए। (२) अचित्ताणं दव्वाणं अविउसरणयाए। (३) एगसाडियउत्तरासंगकरणेणं। (४)चक्खुप्फासे अंजलिपग्गहेणं।
(५) मणसो एगत्तीकरणेणं। जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छति। उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेति।करित्ता वंदइ, णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स णच्चासन्ने णाइदूरे सुस्सूसमाणे नमसमाणे पंजलियउडे अभिमुहे विणएणं पज्जुवासइ।
तत्पश्चात् मेघकुमार ने स्नान किया। [कौतुक, मंगल, प्रायश्चित्त आदि किया] सर्व अलंकारों से विभूषित हुआ।फिर चार घंटा वाले अश्वरथे पर आरूढ हुआ। कोरंट वृक्ष के फूलों की माला वाले छत्र को धारण किया। सुभटों के विपुल समूह वाले परिवार से घिरा हुआ, राजगृह नगर के बीचों-बीच होकर निकला। निकलकर जहाँ गुणशील नामक चैत्य 'था, वहाँ आया। आकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के छत्र पर छत्र
और पताकाओं पर पताका आदि अतिशयों को देखा तथा विद्याधरों, चारण मुनियों और जूंभक देवों को नीचे उतरते एवं ऊपर चढ़ते देखा। यह सब देखकर चार घंटा वाले अश्वरथ से नीचे उतरा। उतर कर पाँच प्रकार के अभिगम करके श्रमण भगवान् महावीर के सम्मुख चला। वह पाँच अभिगम इस प्रकार हैं
(१) पुष्प, पान आदि सचित्त द्रव्यों का त्याग। (२) वस्त्र, आभूषण आदि अचित्त द्रव्यों का अत्याग। (३) एक शाटिका (दुपट्टे) का उत्तरासंग।।। (४) भगवान् पर दृष्टि पड़ते ही दोनों हाथ जोड़ना। . (५) मन को एकाग्र करना। ......
. यह अभिग्रह करके जहां श्रमण भगवान् महावीर थे, वहाँ आया। आकर श्रमण भगवान् महावीर को दक्षिण दिशा से आरम्भ करके (तीन बार) प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा करके भगवान् को स्तुति रूप वन्दन किया
और काय से नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार करके श्रमण भगवान् महावीर के अत्यन्त समीप नहीं और अति दूर भी नहीं, ऐसे समुचित स्थान पर बैठकर धर्मोपदेश सुनने की इच्छा करता हुआ, नमस्कार करता हुआ, दोनों हाथ जोड़े, सन्मुख रह कर विनयपूर्वक प्रभु की उपासना करने लगा। भगवान् की देशना
११४-तए णं समणे भगवं महावीरे मेहकुमारस्स तीसे य महतिमहालियाए परिसाए मज्झगए विचित्तं धम्ममाइक्खइ, जहा जीवा बझंति, मुच्चंति, जह य संकिलिस्संति। धम्मकहा भाणियव्वा, जाव' परिसा पडिगया। १. औप. ७१-७९