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________________ ५०] [ ज्ञाताधर्मकथा उस युग में कलाशिक्षक का कितना सम्मान समाज में था, यह तथ्य भी प्रस्तुत सूत्र में होता है। कलाचार्य को प्रतिदान प्रकट १०० - तए णं से कलायरिए मेहं कुमारं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणिरुअपज्जवसाणाओ बावत्तरि कलाओ सुत्तओ य अत्थओ य करणओ य सिहावेति, सिक्खावेति, सिहावेत्ता सिक्खावेत्ता अम्मापिऊणं उवणेति । तए णं मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो तं कलायरियं मधुरेहिं वयणेहिं विपुलेणं वत्थगंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेंति, सम्मार्णेति सक्कारित्ता सम्माणित्ता विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयंति, दलइत्ता पडिविसज्जेन्ति । तत्पश्चात् वह कलाचार्य, मेघकुमार को गणित - प्रधान, लेखन से लेकर शकुनिरुत पर्यन्त बहत्तर कलाएँ सूत्र (मूल पाठ) से, अर्थ से और प्रयोग से सिद्ध कराता है तथा सिखलाता है। सिद्ध करवाकर और सिखलाकर माता-पिता के पास वापिस ले जाता है। तब मेघकुमार के माता-पिता ने कलाचार्य का मधुर वचनों से तथा विपुल वस्त्र, गंध, माला और अलंकारों से सत्कार किया, सन्मान किया। सत्कार-सन्मान करके जीविका के योग्य विपुल प्रीतिदान दिया। प्रीतिदान देकर उसे विदा किया। १०१ - तए णं मेहे कुमारे बावत्तरिकलापंडिए णवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारसविहिप्पगार- देसीभासा-विसारए गीइरई गंधव्वनट्टकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलं भोगसमत्थे साहसिए वियालचारी जाए यावि होत्था । तब मेघकुमार बहत्तर कलाओं में पंडित हो गया। उसके नौ अंग-दो कान, दो नेत्र, दो नासिका, जिह्वा, त्वचा और मन बाल्यावस्था के कारण जो सोये-से थे अर्थात् अव्यक्त चेतना वाले थे, वे जागृत से हो गये । अठारह प्रकार की देशी भाषाओं में कुशल हो गया । वह गीति में प्रीति वाला, गीत और नृत्य में कुशल हो गया। वह अश्वयुद्ध, रथयुद्ध और बाहुयुद्ध करने वाला बन गया। अपनी बाहुओं से विपक्षी का मर्दन करने समर्थ हो गया। भोग भोगने का सामर्थ्य उसमें आ गया। साहसी होने के कारण विकालचारी - आधी रात में भी चल पड़ने वाला बन गया। मेघकुमार का पाणिग्रहण १०२ - तए णं तस्स मेहकुमारस्स अम्मापियारो मेहं कुमारं बावत्तरिकलापंडितं जाव वियालचारी जायं पासंति । पासित्ता अट्ठ पासायवडिंसए कारेन्ति अब्भुग्गयमुसियपहसिए विव मणि-कणग-रयण-भत्तिचित्ते, वाउद्धूतविजयवेजयंती- पडागा-छत्ताइच्छत्तकलिए, तुंगे, गगणतलमभिलंघमाणसिहरे, जालंतररयणपंजरुम्मिल्लियव्व मणिकणगथूभियाए, वियसियसयपत्तपुंडरीए, तिलयरयणद्धचंदच्चिए नानामणिमयदामालंकिए, अंतो बहिं च सहे तवणिज्जरुइलवालुयापत्थरे, सुहफासे सस्सिरीयरूवे पासाईए जाव ( दरिसणिज्जे अभिरूवे ) पडिरूवे ।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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