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________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात ] [ ३९ अयमेयारूवं डोहलं विणेमीति' कड्ड अभयस्स कुमारस्स अंतियायो पडिणिक्खमति, पडिणिक्खमित्ता उत्तरपुरच्छिमे णं वेभारपव्वए वेडव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णति, समोहण्णइत्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरति, जाव दोच्चं पि वेडव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णति, समोहण्णित्ता खिप्पामेव लगज्जियं सविज्जुयं सफुसियं तं पंचवण्णमेहणिणाओवसोहियं दिव्वं पाउससिरिं विउव्वे । विउव्वेइत्ता जेणेव अभए कुमारे तेणामेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अभयं कुमारं एवं वयासीतत्पश्चात् वह देव अभयकुमार के ऐसा कहने पर हर्षित और संतुष्ट होकर अभयकुमार से बोला- 'देवानुप्रिय ! तुम निश्चित रहो और विश्वास रक्खो। मैं तुम्हारी लघु माता धारिणी देवी के इस प्रकार के इस दोहद की पूर्ति किए देता हूं।' ऐसा कहकर अभयकुमार के पास से निकलता है। निकलकर उत्तरपूर्व दिशा में, वैभारगिरि पर जाकर वैक्रियसमुद्घात करता है। समुद्घात करके संख्यात योजन प्रमाण वाला दंड निकालता है, यावत् दूसरी बार भी वैक्रियसमुद्घात करता है और गर्जना से युक्त, बिजली से युक्त और जल-बिन्दुओं से युक्त पाँच वर्ण वाले मेघों की ध्वनि से शोभित दिव्य वर्षा ऋतु की शोभा की विक्रिया करता है। विक्रिया करके जहाँ अभयकुमार था, वहाँ आता है। आकर अभयकुमार से इस प्रकार कहता है - ७४ - एवं खलु देवाणुप्पिया! मए तव पियट्टयाए सगज्जिया सफुसिया सविज्जुया दिव्वा पाउससिरी विउव्विया । तं विणेउ णं देवाणुप्पिया ! तव चुल्लमाउया धारिणी देवी अयमेयारूवं अकालडोहलं । देवानुप्रिय ! मैंने तुम्हारे प्रिय के लिए - प्रसन्नता की खातिर गर्जनायुक्त, बिन्दुयुक्त और विद्युत्युक्त दिव्य वर्षा - लक्ष्मी की विक्रिया की है। अतः हे देवानुप्रिय ! तुम्हारी छोटी माता धारिणी देवी अपने दोहद की पूर्ति करें । दोहदपूर्ति ७५ –तए णं से अभयकुमारे तस्स पुव्वसंगतियस्स देवस्स सोहम्मकप्पवासिस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठे सयाओ भवणाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता करयल० अंजलिं कड्ड एवं वयासी तत्पश्चात् अभयकुमार उस सौधर्मकल्पवासी पूर्व के मित्र देव से यह बात सुन-समझ कर हर्षित एवं संतुष्ट होकर अपने भवन से बाहर निकलता है। निकलकर जहाँ श्रेणिक राजा बैठा था, वहां आता है। आकर मस्तक पर दोनों हाथ जोड़कर इस प्रकार कहता है ७६ – ‘एवं खलु ताओ! मम पुव्वसंगतिएणं सोहम्मकप्पवासिणा देवेणं खिप्पामेव सगज्जिया सविज्जुया (सफुसिया ) पंचवन्नमेहनिनाओवसोहिआ दिव्वा पाउससिरी विउव्विया । तं विउ णं मम चुल्लमाउया धारिणी देवी अकालदोहलं ।' हे तात! मेरे पूर्वभव के मित्र सौधर्मकल्पवासी देव ने शीघ्र ही गर्जनायुक्त, बिजली से युक्त और (बूँदों सहित) पाँच रंगों के मेघों की ध्वनि से सुशोभित दिव्य वर्षाऋतु की शोभा की विक्रिया की है । अत: मेरी लघु माता धारिणी देवी अपने अकाल- दोहद को पूर्ण करें।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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