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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र दसा (जैन आगम) १०।२।६
बंभी (लिपि) ११११ दिट्ठिवाय (जैन आगम) १६।६।२१, २०।८।९।१५, भावणा (आचारांगसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध के पन्द्रह २५।३।११५
अध्ययन) १५/०।२१ दुस्समाउद्देसय (व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र के सातवें शतक भासापद (प्रज्ञापनासूत्र का ग्यारहवाँ पद) २।६१. ___ का छठा उद्देशक) ८।९।१०१
२५।२।१७ नंदी (जैन आगम-नंदीसूत्र) ८।२।२७, १४६, यजुव्वेद (वेद ग्रन्थ) ११।१२।१६ २५/३।११६
रायप्पसेणइज्ज (जैन आगम) ३।१।३३, ३।६।१४, निघंटु (शास्त्र) २।१।१२
८ारा२३,९।३३।४९,५८,१०६१,११११११४८, नियंदुद्देसय (व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र के दूसरे शतक का ५०,१३६४१६६१,१३।६।६, १८।२।३, ४८।१०।२८
पाँचवा उद्देशक) ७/१०५, ६ (२) रिउव्वेद (रिजुवेद) (रिव्वेद) (वेदग्रन्थ) २१।१२, निरुत्त (शास्त्र) २।१।१२
९।३३।२, ११।१२।१६, १५/०।१६, ३६; नेरइयउद्देसय (प्रज्ञापनासूत्र के अट्ठाईसवें पद का पहला १८।१०।१५ उद्देशक) १३।५।१
लेसुद्देसय (प्रज्ञापनासूत्र के सत्रहवें पद का चौथा नेरइयउद्देसय (जीवाभिगम सूत्र का उद्देशक) १२।३।३, उद्देशक) १९।२।३ ... १३।४।१०,१४।३।१७
लेस्सापद (प्रज्ञापनासूत्र का सत्रहवाँ पद) ४।९।१, पण्णवणा (जैन आगम) ११।२ (५), ४।९।१, ४।१०।१
४।१०।१, ६।२।१, ६।९।१, ७।२।२८, ८।१।४८, वक्कंति (पद) (प्रज्ञापनासूत्र का छठा पद) १।१०।३, २२शवर्ग४|१, २२वर्ग५।१, २५।२।१२, २५।४।८०, ११।१।५, ४४; १२।९।७, ११, २५; १९।३।४३, २५।५।१
२१।१।३, २४।१२।१ (२) पनवणा (जैन आगम-प्रज्ञापनासूत्र) १३।८।१, वागरण (शास्त्र) २।१।१२
१३।१०।१, १६।३।४, १९।१।३, १९।२।१, वेद (वेदग्रन्थ) २।१।१२, ८।२।२७
१९।३।८,१९; १९।५।७; २०।१६; २०१४।१, वेदणापद (प्रज्ञापनासूत्र का पच्चीसवां पद)१०।२।५ पयोगपय (प्रज्ञापनासूत्र का सोलहवाँ पद) ८।७।२५, वेमाणियुद्देसे (जीवाभिगमसूत्र का उद्देशक) रा७२ १५।०९३
सट्ठितंत (शास्त्र) २।११२ परिणामपद (प्रज्ञापनासूत्र का तेरहवाँ पद)१४|४|१० समुग्घायपद (प्रज्ञापनासूत्र का छत्तीसवाँ पद) २।२।१ परियारणापद (प्रज्ञापनासूत्र का चौंतीसवाँ पद) १३।३।१ संखाण (शास्त्र) २२१।१२ पासणयापय (प्रज्ञापनासूत्र का तीसवाँ पद) १६७१ सामवेद (वेद ग्रन्थ) २।१।१२, ९।३३।२ बहुवत्तव्वता (व्वया) (प्रज्ञापना सूत्र का तीसरा पद) सिक्खा (शास्त्र) २२११२
८।२।१५५, २५।३।११७, ११८,१२०, २५।४।१७ सुविणसत्थ (शास्त्र) ११।११।३३ (२), ३४ बंधुद्देसय (प्रज्ञापनासूत्र का चौतीसवाँ पद) ६।९।१ सूयगड (सूत्रकृतांगसूत्र-जैन आगम) १६।६।२१ बंभण्णय (शास्त्र) २।१।१२