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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
७. सुक्कलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा ओहियसरिसा॥४१॥५३-५६॥ _ [७] शुक्ललेश्या-विशिष्ट भवसिद्धिक जीवों के भी औधिक के सदृश चार उद्देशक कहने चाहिए। ॥४१॥ ५३-५६॥
८. एवं एए वि भवसिद्धिएहिं अट्ठावीसं उद्देसगा भवंति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०॥४१।२९-५६॥
॥ इकचत्तालीसइमे सए : एगुणतीसइमाइछप्पनइमपजंता उद्देसगा समत्ता॥ . [८] इस प्रकार भवसिद्धिकजीव-सम्बन्धी अट्ठाईस उद्देशक होते हैं।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है.', इत्यादि पूर्ववत् ।
विवेचन भवसिद्धिक-सम्बन्धी अट्ठाईस उद्देशक उद्देशक २९ से लेकर ५६ तक भवसिद्धिकजीव-सम्बन्धी २८ उद्देशक इस प्रकार हैं-(१) भवसिद्धिक सामान्य के ४ उद्देशक, (२) कृष्णलेश्यादि६ लेश्याओं से युक्त भवसिद्धिक के प्रत्येक के चार-चार उद्देशक के हिसाब से ६x४-२४ उद्देशक होते हैं। इस प्रकार ४+२४-२८ उद्देशक होते हैं।
॥ इकतालीसवाँ शतक : उनतीसवें से छप्पनवें उद्देशक पर्यन्त समाप्त॥
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