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इकतालीसवाँ शतक : उद्देशक-१]
[७३१ गोयमा ! से जहानामए पवए पवमाणे एवं जहा उववायसए ( स० २५ उ० ८ सु० २-८) जाव नो परप्पयोगेणं उववजंति।
[६ प्र.] भगवन् ! वे जीव (तथाकथित नारक) कैसे उत्पन्न होते हैं ?
[६ उ.] गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला (कूदता हुआ अपने पूर्वस्थान को छोड़ कर आगे के स्थान को प्राप्त करता है, इसी प्रकार) इत्यादि उपपातशतक (श० २५, उ० ८, सू० २-८ में उक्त उपपात-कथन) के अनुसार वे आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से नहीं, यहाँ तक कहना चाहिए।
७.[१] ते णं भंते ! जीवा किं आयजसेणं उववजंति, आयअजसेणं उववज्जति ? गोयमा ! नो आयजसेणं उववज्जति, आयअजसेणं उववज्जति।
[७-१ प्र.] भगवन् ! वे जीव आत्म-यश (आत्म-संयम) से उत्पन्न होते हैं अथवा आत्म-अयश (आत्म-असंयम) से उत्पन्न होते हैं ?
[७-१ उ.] गौतम ! वे आत्म-यश से उत्पन्न नहीं होते हैं किन्तु आत्म-अयश से उत्पन्न होते हैं। . [२] जति आयअजसेणं उववजंति किं आयजसं उवजीवंति, आयअजसं नवजीवंति ?
गोयमा ! नो आयजसं उवजीवंति, आयअजसं उवजीवंति।
[७-२ प्र.] भगवन् ! यदि वे जीव आत्म-अयश से उत्पन्न होते हैं तो क्या वे आत्म-यश से जीवननिर्वाह करते हैं अथवा आत्म-अयश से जीवननिर्वाह करते हैं ?
[७-२ उ.] गौतम ! वे आत्म-यश से जीवननिर्वाह नहीं करते, किन्तु आत्म-अयश से करते हैं। [३] जति आयअजसं उवजीवंति किं सलेस्सा, अलेस्सा ? गोयमा ! सलेस्सा, नो अलेस्सा।
[७-३ प्र.] भगवन् ! यदि वे आत्म-अयश से अपना जीवननिर्वाह करते हैं, तो वे सलेश्यी होते हैं अथवा अलेश्यी होते हैं ?
[७-३ उ.] गौतम ! वे सलेश्यी होते हैं, अलेश्यी नहीं होते हैं। [४] जति सलेस्सा किं सकिरिया, अकिरिया ?
गोयमा ! सकिरिया, नो अकिरिया। _ [७-४ प्र.] भगवन् ! यदि वे सलेश्यी होते हैं तो सक्रिय (क्रियासहित) होते हैं या अक्रिय (क्रियारहित) होते हैं ?
[७-४ उ.] गौतम ! वे सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं होते हैं। [५] जति सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव अंतं करेंति ?