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अट्ठमे एगिदियमहाजुम्मसए:
पढमाइ-एक्कारसपजंता उद्देसगा अष्टम एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त द्वितीय एकेन्द्रियमहायुग्मशतकानुसार अष्टम एकेन्द्रियमहायुग्मशतक-प्ररूपणा
१. एवं काउलेस्सभवसिद्धियएगिदिएहि वि तहेव एक्कारसउद्देसगसंजुत्तं सयं। २. एवं एयाणी चत्तारि भवसिद्धिएसु सयाणि, चउसु वि सएसु 'सव्वपाणा जाव उववन्नपुब्बा ?' नो इणढे समढे। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० ॥३५।८।१-११॥
॥पंचतीसइमे सए : अट्ठमं एगिंदियमहाजुम्मसतं समत्तं ॥ ३५-८॥ .. __ [१-२] इसी प्रकार कापोतलेश्यीभवसिद्धिक (कृतयुग्म-कृतयुग्मरूप) एकेन्द्रियों के भी ग्यारह उद्देशकों सहित यह शतक पूर्वोक्त कापोतलेश्या-सम्बन्धी चतुर्थ शतक के समान जानना चाहिए। इस प्रकार ये चार (पांचवाँ, छठा, सातवाँ और आठवाँ) शतक भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव के हैं। इन चारों शतकों में
[प्र.] क्या सर्व प्राण यावत् सर्व सत्त्व पहले उत्पन्न हुए हैं ? [उ.] यह अर्थ समर्थ नहीं है। इतनां विशेष जानना चाहिए। ॥ अष्टम एकेन्द्रिंयमहायुग्मशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक तक सम्पूर्ण ॥ ॥ पैंतीसवाँ शतक : अष्टम एकेन्द्रियमहायुग्मशतक समाप्त॥
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