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________________ ६९२] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [८ प्र.] भगवन् ! चरम-चरमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? [८ उ.] गौतम ! इनका समग्र निरूपण चौथे उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए ॥ १-१०॥ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'० इत्यादि पूर्ववत् । ९. चरिम-अचरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते ! कओ उववजंति ? जहा पढमसमयउद्देसओ तहेव निरवसेसं। सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरइ॥३५।१।११॥ एवं एए एक्कारस उद्देसगा। पढमो ततियो पंचमओ य सरिसगमगा, सेसा अट्ठ सरिसगमगा, नवरं चउत्थे अट्ठमे दसमे य देवा न उववजति, तेउलेसा नत्थि। ॥पंचतीसइमे सए : पढमं एगिदियमहाजुम्मसयं समत्तं ॥ ३५-१॥ [९ प्र.] भगवन् ! चरम-अचरमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [९ उ.] गौतम ! इनका समस्त कथन प्रथमसमयउद्देशक के अनुसार करना चाहिए ॥१-११ ॥ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि कथन पूर्ववत् । इस प्रकार ये ग्यारह उद्देशक हैं। इनमें से पहले, तीसरे और पांचवें उद्देशक के पाठ एक-समान हैं । शेष आठ उद्देशक एकसमान पाठ वाले हैं। किन्तु चौथे, (छठे), आठवें और दसवें उद्देशक में देवों का उपपात तथा तेजोलेश्या का कथन नहीं करना चाहिए। विवेचन-निष्कर्ष और आशय-प्रस्तुत प्रकरण में अप्रथमसमय से लेकर चरम-अचरम-समय तक कल दस उद्देशक कहे गए हैं। प्रथम उद्देशक का निरूपण पहले किया जा चका है। ये ग्यारह उद्देशक कृतयुग्म-कृतयुग्मएकेन्द्रिय के हैं, परन्तु विभिन्न विशेषणों से युक्त हैं यथा—(१) प्रथमसमय, (२) अप्रथमसमय, (३) चरमसमय, (४) अचरमसमय, (५) प्रथम-प्रथम-समय, (६) प्रथम-अप्रथम-समय, (७) प्रथमचरम-समय, (८) प्रथम-अचरम-समय, (९) चरम-चरम-समय, (१०) चरम-अचरम-समय। यहाँ अप्रथम-समय से चरम-अचरम-समय तक (तीसरे से ग्यारहवें उद्देशक तक) का निरूपणं किया गया है। अप्रथमसमय०—जिनको उत्पन्न हुए द्वितीयादि समय हो गए हैं और जो संख्या में कृतयुग्म-कृतयुग्म हैं, ऐसे एकेन्द्रिय जीवों को 'अप्रथमसमय-कृतयुग्म-कृतयुग्मएकेन्द्रिय' कहा गया है। इनका कथन सामान्य एकेन्द्रियों के समान है, इसी कारण यहाँ प्रथम उद्देशक का अतिदेश किया गया है। चरमसमय०-चरमसमय शब्द यहाँ एकेन्द्रियों के मरणसमय के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। उस (चरम) समय में रहे हुए कृतयुग्म-कृतयुग्म एकेन्द्रियों का कथन प्रथमसमय के एकेन्द्रियोदेशक के समान है, उनमें जो दस बोलों की भिन्नता बताई गई है, वह यहाँ भी समझनी चाहिए। इनमें एक विशेषता यह है कि इनमें देव आकर उत्पन्न नहीं होते। इसलिए इस उद्देशकान्तर्गत इनमें तेजोलेश्या का कथन नहीं करना चाहिए। १. अधिकपाठ-यहाँ 'चउत्थे' के बाद 'छट्टे' अधिकपाठ मिलता है। –सं.
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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