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________________ ६८०] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवह रसमया दावरजुम्मा, से त्तं दावरजुम्मकडजुम्मे ९।जेणं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे तिपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया दावरजुम्मा, सेत्तं दावरजुम्मतेयोए १०। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे दुपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया दावरजुम्मा, से तं दावरजुम्मदावरजुम्मे ११ । जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया दावरजुम्मा से त्तं दावरजुम्मकलियोए १२। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया कलियोगा, से त्तं कलियोगकडजुम्मे १३।जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणं तिपजवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया कलियोया, से तं कलियोयतेयोए १४। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे दुपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया कलियोगा, सेत्तं कलियोगदावरजुम्मे १५। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया कलियोगा, से त्तं कलियोयकलियोए १६ । से तेणठेणं जाव कलियोगकलियोगे। [१-२ प्र.] भगवन् ! क्या कारण है कि महायुग्म सोलह कहे गए हैं, यथा—कृतयुग्मकृतयुग्म से लेकर कल्योजकल्योज तक ? [१-२ उ.] गौतम ! (१) जिस राशि में चार संख्या का अपहार करते हुए चार शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय भी कृतयुग्म (चार) हों तो वह राशि कृतयुग्मकृतयुग्म कहलाती है, (२) जिस राशि में से चार का अपहार करते हए तीन शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय कतयग्म हों तो वह राशि कृतयुग्मत्र्योज कहलाती है। (३) जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहत करते हुए दो शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय कृतयुग्म हों तो वह राशि कृतयुग्मद्वापरयुग्म कहलाती है, (४) जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहृत करते हुए एक शेष रहे और उस राशि के अपहारसमय कृतयुग्म हों तो वह राशि कृतयुग्मकल्योज कहलाती है, (५) जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहत करते हुए चार शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय त्र्योज हों तो वह राशि त्र्योजकृतयुग्म कहलाती है, (६) जिस राशि में से चार के अपहार से अपहृत करते हुए तीन शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय भी त्र्योज (तीन) हों तो वह राशि योजत्र्योज कहलाती है। (७) जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहत करते हुए दो बचें और उस राशि के अपहारसमय त्र्योज हों तो वह राशि त्र्योज-द्वापरयुग्म कहलाती है, (८) जिस राशि में से चार अपहत करते हुए एक बचे और उस राशि के अपहारसमय त्र्योज हों तो राशि त्र्योजकल्योज कहलाती है, (९) जिस राशि में से चार संख्या से अपहृत करते हुए चार शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय द्वापरयुग्म (दो) हों तो वह राशि द्वापरयुग्मकृतयुग्म कहलाती है, (१०) जिस राशि में से चार संख्या से अपहृत करते हुए तीन शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय द्वापरयुग्म हो तो वह राशि द्वापरयुग्मत्र्योज कहलाती है। (११) जिस राशि में से चार संख्या से अपहृत करते हुए दो बचें और उस राशि के अपहारसमय द्वापरयुग्म हों तो वह राशि द्वापरयुग्मद्वापरयुग्म कहलाती है। (१२) जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहृत करते हुए एक शेष रहे और उस राशि के अपहार-समय द्वापरयुग्म हों, तो वह राशि द्वापरयुग्मकल्योज कहलाती है, (१३) जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहृत करते हुए चार शेष रहें और उस राशि का अपहार-समय कल्योज
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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