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________________ ६७८] पंचतीसइमसयाओ चत्तालीसइमसय पजंता सया पैंतीसवें से लेकर चालीसवें शतक पर्यन्त छह महायुग्मशतक प्राथमिक ये भगवतीसूत्र के छह महायुग्म शतक है – पैंतीसवाँ, छत्तीसवाँ, सैंतीसवाँ, अड़तीसवाँ, उनचालीसवाँ और चालीसवाँ। इनमें एकेन्द्रिय से लेकर संज्ञी-पंचेन्द्रिय तक के महायुग्मों की उत्पत्ति (कहाँ से ?), आयु, गति, आगति, परिमाण, अपहार, अवगाहना, कर्मप्रकृतिबन्धक-अबन्धक, वेदक-अवेदंक, उदयवान्अनुदयवान्, उदीरक-अनुदीरक, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान-अज्ञान, योग, उपयोग, वर्णादि चार, श्वासोच्छ्वास, आहारक-अनाहारक, विरत-अविरत, क्रियायुक्त-क्रियारहित आदि पदों का १६ प्रकार के महायुग्मों की दृष्टि से विश्लेषण किया गया है। पैंतीसवाँ एकेन्द्रिय महायुग्म शतक है, जिसमें १६ महायुग्म और उनके स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है। इनकी जघन्य और उत्कृष्ट संख्या का भी निरूपण किया गया है। इस प्रकार पैतीसवें शतक के १२ अवान्तर शतकों में से प्रत्येक के ग्यारह उद्देशकों सहित विविध पहलुओं से एकेन्द्रिय जीवों का सांगोपांग वर्णन किया गया है। इसमें पूर्वशतकद्वय के समान अनन्तर-परम्पर, भवसिद्धिक-अभवसिद्धिक, चरम-अचरम तथा लेश्यादि विशेषणों से युक्त एकेन्द्रिय के माध्यम से भी प्ररूपणा की गई है। छत्तीसवें शतक के अन्तर्गत १२ अवान्तरशतकों में भी प्रत्येक के ग्यारह-ग्यारह उद्देशकों में एकेन्द्रिय जीवों के विषय में प्ररूपणाक्रम के समान द्वीन्द्रिय जीवों की भी विविध पहलुओं से चर्चा की गई है। सैंतीसवें शतक में भी १२ अवान्तरशतकों और प्रत्येक के ११-११ उद्देशकों में अतिदेशपूर्वक त्रीन्द्रिय-महायुग्मों की प्ररूपणा है। अड़तीसवें शतक में पूर्ववत् चतुरिन्द्रियमहायुग्मों की प्ररूपणा है। उनचालीसवें शतक में भी पूर्वशतकानुसार अवगाहना और स्थिति को छोड़कर शेष सब कथन प्रायः द्वीन्द्रिय शतक के समान असंज्ञीपंचेन्द्रिय महायुग्म के विषय में प्ररूपणा की है। चालीसवें शतक में इक्कीस अवान्तर शतकों में संज्ञी-पंचेन्द्रिय के षोडश महायुग्मों के माध्यम से उनकी उत्पत्ति आदि का सांगोपांग वर्णन है। संक्षेप में समस्त जीवों की विविधताओं और विशेषताओं का सूक्ष्म विवेचन है। *** * * * * * *
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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