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________________ [६४७ चोत्तीसइमं सयं : बारस एगिदिय-सेढि-सयाई चौतीसवाँ शतक : बारह एकेन्द्रिय-श्रेणी शतक एकेन्द्रिय जीवों के भेद-प्रभेद का निरूपण १. कतिविहा ण भंते ! एगिंदिया पन्नत्ता ? गोयमा ! पंचविहा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा—पुढविकाइया जाव वणस्सतिकाइया। एवमेते वि चउक्कएणं भेएणं भाणियव्वा जाव वणस्सइकाइया। [१ प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [१ उ.] गौतम ! एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा—पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। इस प्रकार इनके भी प्रत्येक के चार-चार भेद वनस्पतिकायिक-पर्यन्त कहने चाहिए। विवेचन-एकेन्द्रिय भेद-प्रभेद की पुनरुक्ति क्यों ?—यहाँ इस शतक में एकेन्द्रिय जीवों की श्रेणी के विषय में निरूपण करने के लिए एकेन्द्रिय भेद-प्रभेदों का पुनः कथन किया गया है। एकेन्द्रियों की विग्रहगति का विविध दिशाओं की अपेक्षा समय-निरूपण २.[१]अपजत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चस्थिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! कतिसमइएणं विग्गहेणं उववजेज्जा ? गोयमा ! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेणं उववजेजा। [२-१ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमान्त में मरणसमुद्घात करके इस रत्नप्रभा के पश्चिमी चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-रूप में उत्पन्न होने योग्य है, तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [२-१ उ.] गौतम वह ! एक समय की, दो समय की अथवा तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। [२] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ–एगसमइएण वा दुसमइएण वा जाव उववजेजा? __एवं खलु गोयमा ! मए सत्त सेढीओ पन्नत्ताओ, तं जहा-उज्जुयायता सेढी १, एगओवंका २, दुहतोवंका ३, एगतोखहा ४, दुहओखहा ५, चक्कवाला ६, अद्धचक्कवाला ७। उज्जुयायताए सेढीए उववजमाणे एगसमइएणं विग्गहेणं उववजेजा, एगओवंकाए सेढीए उववजमाणे दुसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा दुहतोवंकाए सेढीए उववजमाणे तिसमइएणं विग्गहेणं उववजेजा।से तेणद्वेणं गोयमा ! जाव उववजेजा।१।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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