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________________ ६१४] पंचमो उद्देसओ : पंचम उद्देशक चतुर्विध क्षुद्रयुग्म-भवसिद्धिक नैरयिकों की उपपात-सम्बन्धी विविध प्ररूपणा १. भवसिद्धीयखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववजंति ?० किं नेरइए० ? एवं जहेव ओहिओ गमओ तहेव निरंवसेसं जाव नो परप्पयोगेणं उववजंति। [१ प्र.] भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमित भवसिद्धिक नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या नैरयिकों से ? इत्यादि प्रश्न। [१ उ.] गौतम ! इनका सारा कथन औधिक गमक के समान जानना चाहिए यावत् ये परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते। २. रयणप्पभपुढविभवसिद्धीयड्डागकडजुम्मनेरतिया णं०? एवं चेव निरवसेसं। [२ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमित भवसिद्धिक नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [२ उ.] गौतम ! इनका समग्र कथन पूर्ववत् जानना। ३. एवं जाव अहेसत्तमाए। [३] इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक कहना चाहिए। ४. एवं भवसिद्धीयखुड्डातेयोगनेरइया वि, एवं जाव कलियोगो त्ति, नवरं परिमाणं जाणियव्वं, परिमाणं पव्वभणियं जहा पढमुद्देसए। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० । ॥ इक्कतीसइमे सए : पंचमो उद्देसओ समत्तो॥३१-५॥ [४] इसी प्रकार भवसिद्धिक क्षुद्रत्र्योज-राशिप्रमाण नैरयिक के विषय में भी तथा कल्योज पर्यन्त जानना चाहिए। किन्तु इनका परिमाण जान लेना चाहिए। परिमाण पूर्वकथित प्रथम उद्देशक के अनुसार जानना। ___'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ॥ इकतीसवाँ शतक : पंचम उद्देशक समाप्त॥ ***
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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