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________________ ५९४] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ८१. तेउलेस्सा जहा सलेस्सा, नवरं अकिरियावादी अन्नाणियवादी वेणइयवादी य नो नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेंति, मणुस्साउयं पि पकरेंति, देवाउयं पि पकरेंति। [८१] तेजोलेश्यी का आयुष्यबन्ध सलेश्य के समान है। परन्तु अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी जीव नैरयिक का आयुष्य नहीं बांधते, वे तिर्यञ्च, मनुष्य और देव का आयुष्य बांधते हैं। ८२. एवं पम्हलेस्सा वि, सुक्कलेस्सा वि भाणियव्वा। [८२] इसी प्रकार पद्मलेश्यी और शुक्ललेश्यी जीवों के आयुष्यबन्ध के विषय में कहना चाहिए। ८३. कण्हपक्खिया तिहिं समोसरणेहिं चउव्विहं पि आउयं पकरेंति।। [८३] कृष्णपाक्षिक अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी (इन तीनों समवसरणों के) जीव चारों ही प्रकार का आयुष्यबन्ध करते हैं। ८४. सुक्कपक्खिया जहा सलेस्सा। [८४] शुक्लपाक्षिकों का कथन सलेश्य के समान है। ८५. सम्मट्ठिी जहा मणपजवनाणी तहेव वेमाणियाउयं पकरेंति। [८५] सम्यग्दृष्टि जीव मन:पर्यवज्ञानी के सदृश वैमानिक देवों का आयुष्यबन्ध करते हैं। ८६. मिच्छट्टिी जहा कण्हपक्खिया। [८६] मिथ्यादृष्टि का आयुष्यबन्ध कृष्णपाक्षिक के समान है। ८७. सम्मामिच्छट्ठिी ण एक्कं पि पकरेंति जहेव नेरतिया। [८७] सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव एक भी प्रकार का आयुष्यबन्ध नहीं करते। उनमें नैरयिकों के समान दो समवसरण होते हैं। ८८. नाणी जाव ओहिनाणी जहा सम्मट्ठिी। [८८] ज्ञानी से लेकर अवधिज्ञानी तक के जीवों का आयुष्यबन्ध सम्यग्दृष्टि जीवों के समान जानना। ८९. अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा कण्हपक्खिया। [८९] अज्ञानी से लेकर विभंगज्ञानी तक के जीवों का आयुष्यबन्ध कृष्णपाक्षिकों के समान है। ९०. ऐसा जाव अणागारोवउत्ता सव्वे जहा सलेस्सा तहेव भाणियव्वा। [९०] शेष सभी अनाकारोपयुक्त पर्यन्त जीवों का आयुष्यबन्ध सलेश्य जीवों के समान कहना चाहिए। ९१. जहा पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं वत्तव्वया भणिया एवं मणुस्साण वि भाणियव्वा, नवरं मणपज्जवनाणी नोसन्नोवउत्ता य जहा सम्मट्ठिी तिरिक्खजोणिया तहेव भाणियव्वा।। __ [९१] जिस प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों की वक्तव्यता कही, उसी प्रकार मनुष्यों (के आयुष्यबन्ध)
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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