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________________ ५७६] तइयाइ-एक्कारसम-पजंता उद्देसगा तीसरे से ग्यारहवें उद्देशक तक छव्वीसवें शतक के तीसरे से ग्यारहवें उद्देशकानुसार सम-विषम-कर्मप्रारम्भ एवं कर्मान्त का निरूपण १. एवं एतेणं गमएणं जच्चेव बंधिसए उद्देसग-परिवाडी सच्चेव इह वि भाणियव्वा जाव अचरिमोत्ति। अणंतर-उद्देसगाणं चउण्ह वि एक्का वत्तव्वया, सेसाणं सत्तण्हं एक्का। ॥ एगूणतीसइमे सए : तइयाइ-एक्कारसम-पजंता उद्देसगा समत्ता॥ २९-३-११॥ ॥ एगूणतीसइमं कम्म-पट्ठवणसयं समत्तं ॥ २९॥ · [१] बन्धीशतक (२६ वें शतक) में उद्देशकों की जो परिपाटी कही है, यहाँ भी इस पाठ से समग्र उद्देशकों की वह परिपाटी यावत् अचरमोद्देशक पर्यन्त कहनी चाहिए। अनन्तर सम्बन्धी चार उद्देशकों की एक वक्तव्यता और शेष सात उद्देशकों की एक वक्तव्यता कहनी चाहिए। 'हे भगवान् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन—दो प्रकार की वक्तव्यताओं का अतिदेश–यहाँ दो प्रकार की वक्तव्यताओं का अतिदेश किया गया है। अनन्तरोपपन्नक, अनन्तरावगाढ़, अनन्तराहारक और अनन्तरपर्याप्तक, इन चार उद्देशकों की वक्तव्यता एक समान है और वह बन्धीशतक अनन्तरसम्बन्धी चार उद्देशकों के समान कहनी चाहिए। शेष जो सात उद्देशक हैं, उनकी वक्तव्यता भी समान है और वह २६वें शतक में उक्त वक्तव्यतानुसार कहनी चाहिए। ॥ उनतीसवां शतक : तीसरे से ग्यारहवाँ उद्देशक सम्पूर्ण। ॥ उनतीसवाँ : कर्मप्रस्थापनशतक समाप्त॥ १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९४२
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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