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छब्बीसवाँ शतक : उद्देशक-१]
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[६५] अलेश्य जीवों में एकमात्र अन्तिम भंग होता है। ६६. कण्हपक्खिए णं० पुच्छा। गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी, बंधति, बंधिस्सति। अत्थेगतिए बंधी, न बंधति, बंधिस्सति। [६६ प्र.] भगवन् ! कृष्णपाक्षिक जीव ने (आयुष्यकर्म) बांधा था, इत्यादि प्रश्न।
[६६ उ.] गौतम ! (१) किसी जीव ने (आयुष्यकर्म) बांधा था, बांधता है और बांधेगा तथा (२) किसी जीव ने बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा, ये दो भंग पाये जाते हैं।
६७. सुक्कपक्खिए सम्मट्ठिी मिच्छादिट्ठी चत्तारि भंगा। [६७] शुक्लपाक्षिक सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि में चारों भंग पाये जाते हैं। ६८. सम्मामिच्छादिट्ठी० पुच्छा। गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी, न बंधति, बंधिस्सति; अत्थेगतिए बंधी, न बंधति, न बंधिस्सति। • [६८ प्र.] भगवन् ! सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव ने आयुष्यकर्म बांधा था ? इत्यादि प्रश्न।
[६८ उ.] गौतम ! किसी जीव ने बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा तथा किसी जीव ने बांधा था, नहीं बांधता और नहीं बांधेगा, ये (तीसरा और चौथा) दो भंग पाये जाते हैं।
६९. नाणी जाव ओहिनाणी चत्तारि भंगा। [६९] ज्ञानी (से लेकर) अवधिज्ञानी तक में चारों भंग पाये जाते हैं। ७०. मणपज्जवनाणी० पुच्छा।
गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी, बंधति, बंधिस्सति;अत्थेगतिए बंधी, न बंधती, बंधिस्सति; अत्थेगतिए बंधी, न बंधति, न बंधिस्सति।
[७० प्र.] भगवन् ! मनःपर्यवज्ञानी जीव ने आयुष्यकर्म बांधा था ? इत्यादि (चातुर्भगिक प्रश्न)। ___ [७० उ.] गौतम ! किसी मन:पर्यवज्ञानी ने आयुष्यकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा; किसी मन:पर्यवज्ञानी ने आयुष्यकर्म बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा तथा किसी मनःपर्यवज्ञानी ने बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा, ये तीन भंग पाये जाते हैं।
७१. केवलनाणे चरिमो भंगो। [७१] केवलज्ञानी में एकमात्र चौथा भंग पाया जाता है। ७२. एवं एएणं कमेणं नोसन्नोवउत्ते बितियाविहूणा जहेव मणपजवनाणे।