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नवमो उद्देसओ : भविए
नौवाँ उद्देशक : भव्यों की उत्पत्ति चौवीस दण्डकगत भव्य जीवों की उत्पत्ति का अतिदेशपूर्वक निरूपण
[१] भवसिद्धियनेरइया णं भंते ! कहं उववजंति ? गोयमा ! से जहानामए पवए पवमाणे०, अवसेसं तं चेव जाव वेमाणिए। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति।
॥पंचवीसइमे सते : नवमो उद्देसओ समत्तो॥ २५-९॥ [१ प्र.] भगवन् ! भवसिद्धिक (भव्य) नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[१ उ.] गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ ......" इत्यादि अवशिष्ट (समस्त वर्णन) पूर्ववत् यावत् वैमानिक पर्यन्त (कहना चाहिए)। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ॥पच्चीसवाँ शतक : नौवाँ उद्देशक समाप्त॥
*** दसमो उद्देसओ : 'अभविए'
दसवाँ उद्देशक : अभव्य जीवों की उत्पत्ति चौवीस दण्डकगत अभव्य जीवों की उत्पत्ति का अतिदेशपूर्वक निरूपण
[१] अभवसिद्धियनेरइया णं भंते ! कहं उववजंति ? गोयमा ! से जहानामए पवए पवमाणे०, अवसेसं तं चेव जाव वेमाणिए। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०।
॥पंचवीसइमे सते : दसमो उद्देसओ समत्तो॥ २५-१०॥ [१ प्र.] भगवन् ! अभवसिद्धिक (अभव्य) नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[१ उ.] गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ, इत्यादि अवशिष्ट (समस्त वर्णन) पूर्ववत् यावत् वैमानिक पर्यन्त (कहना चाहिए)। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ॥ पच्चीसवाँ शतक : दसवाँ उद्देशक समाप्त॥
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