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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सूक्ष्मसम्परायसंयम, असंयम अथवा संयमासंयम को ग्रहण करता है।
१३०. छेदोवट्ठावणिए० पुच्छा।
गोयमा ! छेदोवट्ठावणियसंजयत्तं जहति; सामाइयसंजमं वा परिहारविसुद्धियसंजमं वा असंजमं वा संजमासंजमं वा उवसंपज्जति।
[१३० प्र.] भगवन् ! छेदोपस्थापनीयसंयत छेदोपस्थापनीयसंयतत्त्व को छोड़ते हुए किसे छोड़ता है और किसे ग्रहण करता है?
[१३० उ.] गौतम! वह छेदोपस्थापनीयसंतत्त्व का त्याग करता है और सामायिकसंयम, परिहारविशुद्धिकसंयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम, असंयम या संयमासंयम को प्राप्त करता है।
१३१. परिहारविसुद्धिए० पुच्छा। गोयमा ! परिहारविसुद्धियसंजयत्तं जहति; छेदोवट्ठावणियसंजमं वा असंजमं वा उपसंपज्जइ।
[१३१ प्र.] भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत परिहारविशुद्धिकसंयतत्त्व को छोड़ता हुआ किसका त्याग करता है और किसको ग्रहण करता है ?
_ [१३१ उ.] गौतम! वह परिहारविशुद्धिकसंयतत्त्व का त्याग करता है और छेदोपस्थापनीयसंयम या असंयम को ग्रहण करता है।
१३२. सुहुमसंपराए० पुच्छा।
गोयमा! सुहुमसंपरायसंजयत्तं जहति; सामाइयसंजमं या छेदोवट्ठावणियसंजमं वा अहक्खायसंजमं या असंजमं या उवसंपज्जइ।
[१३२ प्र.] भगवन् ! सूक्ष्मसम्परायसंयत सूक्ष्मसम्परायसंयतत्त्व को छोड़ता हुआ किसका त्याग करता है और किसको ग्रहण करता है।)
। [१३२ उ.] गौतम! वह सूक्ष्मसम्परायसंयतत्त्व को छोड़ता है और सामायिकसंयम, छेदोपस्थापनीयसंयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम, असंयम अथवा संयमासंयम को ग्रहण करता है।
१३३. अहक्खायसंजए० पुच्छा।
गोयमा ! अहक्खायसंजयत्तं जहति; सुहुमसंपरागसंजमं वा अस्संजमं वा सिद्धिगतिं वा उवसंपज्जति। [ दारं २४]।
[१३३ प्र.] भगवन् ! यथाख्यातसंयत यथाख्यातसंयतत्त्व को त्याग कर किसे त्यागता यावत् किसे प्राप्त करता है ? इत्यादि प्रश्न।
[१३३ उ.] गौतम! वह यथाख्यातसंयतत्त्व का त्याग करता है और सूक्ष्मसम्परायसंयम, असंयम या सिद्धिगति को प्राप्त करता है। [चौवीसवाँ द्वार]
विवेचन—पांचों प्रकार के संयतों द्वारा त्याग और ग्रहण : एक विश्लेषण (१) सामायिकसंयत सामायिकसंयम को छोड़ कर छेदोपस्थापनीयसंयम तब ग्रहण करता है जब या तो वह तेईसवें तीर्थंकर के तीर्थ