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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र १२२. सामाइयसंजए णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ वेदेति ? गोयमा! नियमं अट्ठ कम्मप्पगडीओ वेदेति। [१२२ प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत कितनी कर्मप्रकृत्तियों का वेदन करता है ? [१२२ उ.] गौतम! वह नियम से आठ कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है। १२३. एवं जाव सुहुमसंपरागे।
[१२३] इसी प्रकार यावत् सूक्ष्मसम्परायसंयत के विषय में जानना। बाईसवाँ वेदनद्वार : कर्मप्रकृतिवेदन की प्ररूपणा
१२४. अहक्खाए० पुच्छा।
गोयमा ! सत्तविहवेदए वा, चउविहवेदए वा। सत्त वेदेमाणे मोहणिज्जवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ वेदेति। चत्तारि वेदेमाणे वेदणिज्जाऽऽउय-नाम-गोयाओ चत्तारि कम्मप्पड़ीओ वेदेति। [दारं २२]।
[१२४ प्र.] भगवन् ! यथाख्यातसंयत कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ?
[१२४ उ.] गौतम! वह या तो सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है या फिर चार का वेदन करता है। यदि सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है तो मोहनीय कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है। यदि चार का वेदन करता है तो वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र इन चारों कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है। [बाईसवाँ द्वार]
विवेचन-यथाख्यातसंयत के कर्मप्रवृतियों का वेदन-यथाख्यातसंयत के निर्ग्रन्थदशा में मोहनीयकर्म का क्षय या उपशम हो जाने से वह मोहनीय को छोड़कर शेष सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है और स्थानक-अवस्था में चार घाती कर्मों (ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय) का क्षय हो जाने से वह शेष चार आंघाती कर्मों का वेदन करता है। तेईसवाँ कर्मोदीरणद्वार : कर्मों की उदीरणा की प्ररूपणा
१२५. सामाइयसंजए णं भंते। कति कम्मप्पगडीओ उदीरेति ? गोयमा! सत्तविह० जहा बउसो (उ० ६ सु० १६२)। [१२५ प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत कितनी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है ?
[१२५ उ.] गौतम! वह सात कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है; इत्यादि वर्णन (उ. ६, सू. १६२ में कथित) बंकुश के समान जानना।
१२६. एवं जाव परिहारविसुद्धिए। [१२६] इस प्रकार यावत् परिहारविशुद्धिकसंयत पर्यन्त कहना चाहिए। --तत्ति पत्र ९१५