________________
४६८]
[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
११४. सामाइयसंजए णं भंते ! केवतियं कालं वड्डमाणपरिणामे होजा? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, जहा पुलाए ( उ० ६ सु० १४७)। [११४ प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत कितने काल तक वर्द्धमान परिणामयुक्त रहता है ?
[११४ उ.] गौतम ! वह जघन्य एक समय तक (वर्द्धमान परिणामयुक्त) रहता है, इत्यादि वर्णन (उ. ६, सू. १४७ में कथित) पुलाक के समान है।
११५. एवं जाव परिहारविसुद्धिए। [११५] इसी प्रकार यावत् परिहारविशुद्धिकसंयत तक कहना चाहिए। ११६.[१] सुहुमसम्परागसंजए णं भंते! केवतियं कालं वड्डमाणपरिणामे होजा? . गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। [ १.१६-१ प्र.] भगवन् ! सूक्ष्मसम्परायसंयत कितने काल तक वर्द्धमान परिणामयुक्त रहता है ?
[११६-१ उ.] गौतम! वह जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक वर्द्धमान परिणाम वाला रहता है।
[२] केवतियं कालं हायमाणपरिणामे ? एवं चेव। [११६-२ प्र.] भगवन् ! वह कितने काल तक हीयमान परिणाम वाला रहता है ? [११६-२ उ.] गौतम! पूर्ववत् (जघन्य एक समय और उत्कृष्ट एक अन्तर्मुहूर्त तक) जानना चाहिए। ११७. [१] अहक्खातसंजए णं भंते! केवतियं कालं वड्डमाणपरिणामे होजा? गोयमा! जहन्नेणं अन्तोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [११७-१ प्र.] भगवन् ! यथाख्यातसंयत कितने काल वर्द्धमान परिणाम वाला रहता है ? [११७-१ उ.] गौतम! वह जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक (वर्द्धमान परिणामी रहता है।) [२] केवतियं कालं अवट्ठियपरिणामे होजा? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी। [ दारं २०]। [११७-२ प्र.] वह कितने काल तक अवस्थितपरिणाम वाला होता है ? .
[११७-२ उ.] गौतम! वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोंन पूर्वकोटिवर्ष तक (अवस्थितपरिणामी रहता है।) [वीसवां द्वार]
विवेचन—सूक्ष्मसम्परासंयत के परिणाम–सूक्ष्मसम्परायसंयत जब श्रेणी चढ़ते हैं तब वर्द्धमान परिणाम वाले होते हैं और जब श्रेणी से गिरते हैं तब हीयमान परिमाण वाले होते हैं । इस गुणस्थान का स्वभाव ही ऐसा होता है कि उसमें अवस्थित परिणाम नहीं होते। सूक्ष्मसम्परायसंयत का वर्द्धमान परिणाम जघन्य एक