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________________ पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक - ७] षट्स्थानपतित होता है । ८४. एवं परिहारविसुद्धियस्स वि । [८४] इसी प्रकार परिहारविशुद्धिक संयत के विषय में जानना चाहिए। ८५. सामाइयसंजए णं भंते ! सुहुमसंपरायसंजयस्स परट्ठाणसन्निगासेणं चरित्तपज्जवे० पुच्छा। गोयमा ! हीणे, नो तुल्ले, नो अब्भहिए; अणंतगुणहीणे । [८५ प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत, सूक्ष्मसम्परायसंयत के परस्थानसन्निकर्ष की अपेक्षा क्या हीन, तुल्य या अधिक होता है ? [ ८५ उ.] गौतम ! वह हीन होता है, किन्तु तुल्य या अधिक नहीं होता। वह अनन्तगुणहीन होता है । ८६. एवं अहक्खायसंजयस्स वि। [ ४६३ [८६] इसी प्रकार यथाख्यातसंयत के विषय में जानना । ८७. एवं छेदोवट्ठावणिए वि। हेट्ठिल्लेसु तिसु वि समं छट्ठाणवडिए, उवरिल्लेसु दोसु तहेव हीणे । . [८७] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत भी नीचे के तीनों संयतों (परिहारविशुद्धिक, सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात) के साथ षट्स्थानपतित होता है और ऊपर के दो संयतों के साथ उसी प्रकार अनन्तगुणहीन होता है। ८८. जहा छेदोवट्ठावणिए तहा परिहारविसुद्धिए वि । [८८] परिहारविशुद्धिकसंयत का कथन छेदोपस्थापनीयसंयत के समान जानना चाहिए। ८९. सुहुमसंपरायसंजए णं भंते ! समाइयसंजयस्स परट्ठाण० पुच्छा । गोयमा ! नो हीणे, नो तुल्ले, अब्भहिए- अणंतगुणमब्भहिए । [८९ प्र.] भगवन् ! सूक्ष्मसम्परायसंयत, सामायिकसंयत के परस्थानसन्निकर्ष (विजातीय चारित्रपर्यवों) की अपेक्षा हीन, तुल्य या अधिक होता है ? [८९ उ.] गौतम ! वह हीन और तुल्य नहीं, किन्तु अधिक होता है, अनन्तगुण अधिक होता है। ९०. एवं छेदोवट्ठावणिय - परिहारविसुद्धिएसु वि समं । सट्ठाणे सिय हीणे, नो तुल्ले, सिय अब्भहिए। जदि हीणे अणंतगुणहीणे । अह अब्भहिए अनंतगुणमब्भहिए । [९०] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय और परिहारविशुद्धिकसंयत के साथ भी जानना । स्वस्थानसन्निकर्ष (अपने सज़ातीय चारित्रपर्यवों) की अपेक्षा से कदाचित् हीन और कदाचित् अधिक होते हैं, किन्तु तुल्य नहीं होते हैं। यदि हीन होते हैं तो अनन्तगुण हीन और अधिक होते हैं तो अनन्तगुण अधिक होते । ९१. सुहुमसंपरायसंजयस्स अहक्खायसंजयस्स य परट्ठाण० पुच्छा । गोयमा ! हीणे, नो तुल्ले, नो अब्भहिए, अनंतगुणहीणे ।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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