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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१७१ उ.] गौतम ! वह निर्ग्रन्थता को छोड़ता है और कषायकुशीलत्व, स्नातकत्व या असंयम को प्राप्त करता है।
१७२. सिणाए० पुच्छा। गोयमा ! सिणायत्तं जहति; सिद्धिगतिं उवसंपज्जइ। [दारं २४]
[१७२ प्र.] भगवन् ! स्नातक, स्नातकत्व.का त्याग करता हुआ क्या छोड़ता है और क्या प्राप्त करता है ? । [१७२ उ.] गौतम ! स्नातक, स्नातकत्व को छोड़ता है और सिद्धगति को प्राप्त करता है। [चौवीसवाँ द्वार]
विवेचन-कौन क्या त्यागता है, क्या प्राप्त करता है ?-पुलाक पुलाकत्व को छोड़कर उसके तुल्य संयमस्थानों के सद्भाव से कषायकुशीलत्व को प्राप्त करता है। इसी प्रकार जिस संयत के जैसे संयमस्थान होते हैं, वह उसी भाव को प्राप्त होता है, किन्तु कषायकुशील अपने समान संयमस्थानभूत पुलाकादि भावों को प्राप्त करते हैं और अविद्यमान समान संयमस्थान रूप निर्ग्रन्थभाव को प्राप्त करते हैं। निर्ग्रन्थ कषायकुशीलभाव या स्नातकभाव को प्राप्त करते हैं और स्नातक तो सिद्धगति को ही प्राप्त करते हैं।'
निर्ग्रन्थ उपशमश्रेणी या क्षपकश्रेणी करते हैं। उपशमश्रेणी करने वाले निर्ग्रन्थ श्रेणी से गिरते हुए कषायकुशीलता प्राप्त करते हैं और श्रेणी के शिखर पर मरण कर देवरूप से उत्पन्न होते हुए असंयत होते हैं, किन्तु संयतासंयत (देशविरत) नहीं होते। क्योंकि देवों में संयतासंयतत्व नहीं होता। यद्यपि निर्ग्रन्थ श्रेणी से गिरकर संयतासंयत भी होते हैं, परन्तु यहाँ उसकी विवक्षा नहीं की गई है, क्योंकि श्रेणी से गिर कर वह सीधा संयतासंयत नहीं होता। किन्तु कषायकुशील होकर संयतासंयत होता है। स्नातक स्नातकत्व को छोड़कर सीधे मोक्ष में ही जाते हैं। पच्चीसवाँ संज्ञाद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में संज्ञाओं की प्ररूपणा
१७३. पुलाए णं भंते ! किं सण्णोवउत्ते होज्जा, नोसण्णोवउत्ते होज्जा। गोयमा ! णोसण्णोवउत्ते होजा।
[१७३ प्र.] भगवन् ! पुलाक संज्ञोपयुक्त (आहारादि संज्ञायुक्त) होता है अथवा नोसंज्ञोपयुक्त (आहारादिसंज्ञा से रहित) होता है ?
[१७३ उ.] गौतम ! वह संज्ञोपयुक्त नहीं होता, नोसंज्ञोपयुक्त होता है। १७४. बउसे णं भंते ! ० पुच्छा। गोयमा ! सन्नोवउत्ते वा होजा, नोसण्णोवउत्ते वा होज्जा। [१७४ प्र.] भगवन् ! बकुश संज्ञोपयुक्त होता है अथवा नोसंज्ञोपयुक्त होता है ?
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९०४
(ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा.७, पृ. ३४११-१२