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________________ ४३०] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र १६४. कसायकुसीले० पुच्छा। गोयमा ! सत्तविहउदीरए वा, अट्ठविहउदीरए वा छब्बिहउदीरए वा, पंचविहउदीरए वा। सत्त उदीरेमाणे आउयवजाओ सत्त कम्मप्पगडीओ उदीरेइ, अट्ठ उदीरेमाणे पडिपुण्णाओ अट्ठ कम्मप्पगडीओ उदीरेइ,छ उदीरेमाणे आउय-वेयणिजवजओ छ कम्मप्पगडीओ उदीरेइ, पंच उदीरेमाणे आउय-वेयणिज-मोहणिज्जवजाओ पंच कम्मप्पगडीओ उदीरेइ। [१६४ प्र.] कषायकुशील की उदीरणा के विषय में प्रश्न है। _ [१६४ उ.] गौतम ! वह सात, आठ, छह या पांच कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है। सात की उदीरणा करता है तो आयुष्य को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है, आठ की उदीरणा करता है तो परिपूर्ण आठ कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है और छह की उदीरणा करता है तो आयुष्य और वेदनीय को छोड़कर शेष छह कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है तथा पांच की उदीरणा करता है तो आयुष्य, वेदनीय और मोहनीय को छोड़कर, शेष पांच कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है। १६५. नियंठे० पुच्छा। गोयमा ! पंचविहउदीरए वा, दुविहउदीरए वा।पंच उदीरेमाणे आउय-वेयणिजमोहणिज्जवजाओ पंच कम्मप्पगडीओ उदीरेइ, दो उदीरेमाणे नामं च गोयं च उदीरेइ। [१६५ प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थ कितनी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है ? - [१६५ उ.] गौतम ! वह या तो पांच कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है, अथवा दो कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है। जब वह पांच की उदीरणा करता है तब आयुष्य, वेदनीय और मोहनीय को छोड़कर शेष पांच कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है। दो की उदीरणा करता है तो नाम और गोत्र कर्म की उदीरणा करता है। १६६. सिणाए० पुच्छा। गोयमा ! दुविहउदीरए वा, अणुदीरए वा। दो उदीरेमाणे नामं च गोयं च उदीरेइ। [दारं २३] [१६६ प्र.] भगवन् ! स्नातक कितनी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है ? [१६६ उ.] गौतम ! या तो वह दो की उदीरणा करता है अथवा बिलकुल उदीरणा नहीं करता। जब दो की उदीरणा करता है तो नाम और गोत्र कर्म की उदीरणा करता है। [तेईसवाँ द्वार] विवेचनकौन कितने कर्मों की उदीरणा करता है ?-पुलाक आयुष्य और वेदनीय कर्म की उदीरणा नहीं करता, क्योंकि उसके उदीरणा करने योग्य तथाविध अध्यवसाय नहीं होते, किन्तु पहले वह इन दोनों कर्मों की उदीरणा करके बाद में पुलाकत्व को प्राप्त होता है। इसी प्रकार आगे जिन-जिन कर्मप्रकृतियों की उदीरपा का निषेध किया गया है, उन-उन कर्मप्रकृतियों की पहले उदीरणा करके पीछे बकुशादित्व को प्राप्त करता है। स्नातक सयोगी अवस्था में नाम और गोत्र कर्म की उदीरणा करता है तथा आयुष्य और वेदनीय कर्म की उदीरणा तो सातवें गुणस्थान में ही बन्द हो जाती है। अयोगी अवस्था में तो वह अनुदीरक ही होता है। १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९०४ (ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा.७, पृ. ३४०९
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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