________________
३८०]
[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र २२. एवं जाव सीसपहेलियाओ। [२२] इसी प्रकार यावत् शीर्षप्रहेलिका तक जानना। २३. पलिओवमा णं पुच्छा।
गोयमा ! नो संखेजाओ आवलियाओ, सिय असंखेजाओ आवलियाओ, सिय अणंताओ आवलियाओ।
[२३ प्र.] भगवन् ! क्या पल्योपम संख्यात आवलिकारूप हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[२३ उ.] गौतम ! वे संख्यात आवलिकारूप नहीं हैं, किन्तु कदाचित् असंख्यात आवलिकारूप हैं और कदाचित् अनन्त आवलिकारूप हैं।
२४. एवं जाव उस्सप्पिणीओ। [२४] इसी प्रकार यावत् उत्सर्पिणी पर्यन्त समझना चाहिए। . २५. पोग्गलपरियट्टा णं० पुच्छा। गोयमा! नो संखेजाओं आवलियाओ, नो असंखेजाओ आवलियाओ, अणंताओ आवलियाओ। [२५ प्र.] भगवन् ! क्या पुद्गलपरिवर्तन संख्यात आवलिकारूप हैं ? इत्यादि प्रश्न।।
[२५ उ.] गौतम ! वे न तो संख्यात.आवलिकारूप हैं और न ही असंख्यात आवलिकारूप हैं, किन्तु अनन्त आवलिकारूप हैं।
विवेचन—आनप्राण से लेकर पुद्गलपरिवर्तन तक आवलिकागत कालमान-आनप्राण से शीर्षप्रहेलिका तक कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त आवलिकारूप हैं । पल्योपम से लेकर उत्सर्पिणी तक संख्यात आवलिकारूप नहीं, किन्तु कदाचित् असंख्यात आवलिकारूप और कदाचित् अनन्त आवलिकारूप हैं तथा पुद्गलपरिवर्तन संख्यात-असंख्यात आवलिकारूप नहीं, किन्तु अनन्त आवलिकारूप हैं। यह काल संख्यात बहुत्व की अपेक्षा से है। स्तोकादि कालों में एकत्व-बहुत्वदृष्टि से आनप्राणादि से शीर्षप्रहेलिका पर्यन्त संख्यानिरूपण
२६. थोवे णं भंते ! कि संखेजाओ० आणापाणूओ, असंखेजाओ? जहा आवलियाए वत्तव्वया एवं आणापाणूओ वि निरवसेसा। [२६ प्र.] भगवन् ! स्तोक क्या संख्यात आनप्राणरूप है या असंख्यात आनप्राणरूप है ? इत्यादि प्रश्न।
[२६ उ.] जिस प्रकार आवलिका के सम्बन्ध में वक्तव्यता है, उसी प्रकार आनप्राण से सम्बन्धित समग्र वक्तव्यता कहनी चाहिए।
२७. एवं एएणं गमएणं जाव सीसपहेलिया भाणियव्वा। १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ. १०१३-१०१४