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________________ पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक - ४] [ ३५७ [ १६६ उ.] गौतम ! ओघादेश से वे कदाचित् कृतयुग्म- समय की स्थिति वाले हैं, यावत् कदाचित् कल्यो - समय की स्थिति वाले हैं, विधानादेश से वे कृतयुग्म - समय की स्थिति वाले भी हैं, यावत् कल्योजसमय की स्थिति वाले भी हैं। १६७. एवं जाव अणंतपएसिया । [१६७] इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशीस्कन्ध तक जानना चाहिए । १६८. परमाणुपोग्गले णं भंते ! कालवण्णपज्जवेहिं किं कडजुम्मे, तेयोगे० ? ठितवत्तव्या एवं वण्णेसु वि सव्वेसु, गंधेसु वि। [१६८ प्र.] भगवन् ! (एक) परमाणु- पुद्गल काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है अथवा योज है ? इत्यादि प्रश्न । [ १६८ उ.] गौतम ! जिस प्रकार स्थिति सम्बन्धी वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार वर्णों एवं सभी गन्धों की वक्तव्यता कहनी चाहिए । १६९. एवं चेव रसेसु वि जाव महुरो रसो त्ति । [१६९] इसी प्रकार सभी रसों की मधुररस तक की वक्तव्यता जाननी चाहिए। १७०. अनंतपएसिए० णं भंते ! खंधे कक्खडफासपज्जवेहिं किं कडजुम्मे पुच्छा । गोयमा ! सिय कडजुम्मे जाव सिय कलियोगे । [१७० प्र.] भगवन् ! (एक) अनन्तप्रदेशीस्कन्ध कर्कशस्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न । [१७० उ.] वह कदाचित् कृतयुग्म है, यावत् कदाचित् कल्योज है । १७१. अणंतपएसिया णं भंते! खंधा कक्खफासपज्जवेहिं किं कडजुम्मा० पुच्छा। गोयमा ! ओघादेसेणं सिया कडजुम्मा जाव सिय कंलियोगा; विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि जाव कलियोगा वि । [१७१ प्र.] भगवन् ! ( अनेक) अनन्तप्रदेशीस्कन्ध कर्कशस्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न । [१७१ उ.] गौतम ! ओघादेश से वे कदाचित् कृतयुग्म हैं, यावत् कदाचित् कल्योज हैं, तथा विधानादेश से कृतयुग्म भी हैं, यावत् कल्योज भी हैं । १७२. एवं मउय-गरुग्र- लहुया वि भाणियव्वा । [१७२] इसी प्रकार मृदु (कोमल), गुरु (भारी) एवं लघु (हलके) स्पर्श के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए ।. १७३. सीय-उसिण- निद्ध-लुक्खा जहा वण्णा ।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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