SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 443
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१२] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मसमयद्वितीया जाव सिय कलियोगसमयद्वितीया; विहाणादेसेणं कडजुम्मसमयद्वितीया वि जाव कलियोगसमयट्ठितीया वि। __ [६३ प्र.] भगवन् ! (अनेक) परिमंडल-संस्थान कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं ? इत्यादि प्रश्न । [६३ उ.] गौतम ! वे ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं यावत् कदाचित् कल्योज-समय की स्थिति वाले हैं। विधानादेश से कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले भी हैं, यावत् कल्योजसमय की स्थिति वाले भी हैं। . ६४. एवं जाव आयता। [६४] इसी प्रकार आयत-संस्थान तक जानना चाहिए। विवेचन—परिमंडलादि संस्थानों का काल की अपेक्षा विचार—आशय यह है कि परिमंडलादि संस्थानों से परिणत स्कन्ध कितने काल तक ठहरते हैं और उन समयों में चतुष्कादि का अपहार करने पर कितने शेष बचते हैं, जिससे वे कृतयुग्मादि संख्या वाले बनते हैं।' पांच संस्थानों में वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श की अपेक्षा कृतयुग्मादि प्ररूपणा ६५. परिमंडले णं भंते ! संठाणे कालवण्णपज्जवेहिं किं कडजुम्मे जाव कलियोगे? गोयमा ! सिय कडजुम्मे, एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ठितीए। [६५ प्र.] भगवन् ! परिमण्डल-संस्थान के काले वर्ण के पर्याय क्या कृतयुग्म हैं, यावत् कल्योज रूप [६५ उ.] गौतम ! वे कदाचित् कृतयुग्मरूप होते हैं, इत्यादि जिस प्रकार पूर्वोक्त पाठ से स्थिति के सम्बन्ध में कहा है, उसी प्रकार यहाँ कहना। ६६. एवं नीलवण्णपजवेहि वि। [६६] इसी प्रकार नीलवर्ण के पर्यायों के विषय में समझना चाहिए। ६७. एवं पंचहिं वण्णेहिं, दोहिं गंधेहि, पंचेहिं, रसेहिं, अट्टहिं फासेहिं जाव लुक्खफासपज्जवहिं। [६७] इसी प्रकार पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श के विषय में रूक्ष स्पर्श-पर्याय तक कहना चाहिए। विवेचन—प्रस्तुत दो सूत्रों (६५-६६) में पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श, इन बीस बोलों की अपेक्षा से कृतयुग्म आदि का विचार किया गया है। विविध दिग्वर्ती श्रेणियों की द्रव्यार्थ से यथायोग्य संख्यात-असंख्यात अनन्तता की प्ररूपणा ६८. सेढीओ णं भंते ! दवट्ठयाए किं संखेजाओ, असंखेज्जाओ अणंताओ? १. भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा.७, पृ. ३१३८
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy