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________________ पाप : एक चिन्तन भारतीय मनीषियों ने पाप के सम्बन्ध में भी अपना स्पष्ट चिन्तन प्रस्तुत किया है। पाप की परिभाषा करते हुए लिखा है, जो आत्मा को बन्धन में डाले, जिसके कारण आत्मा का पतन हो, जो आत्मा के आनन्द का शोषण करे और आत्मशक्तियों का क्षय करे, वह पाप है। उत्तराध्ययनचूर्णि' में लिखा है—जो आत्मा को बांधता है वह पाप है। स्थानांगटीका में आचार्य अभयदेव ने लिखा है—जो नीचे गिराता है, वह पाप है; जो आत्मा के आनन्दरस का क्षय करता है, वह पाप है। जिस विचार और आचार से अपना और पर का अहित हो और जिससे अनिष्ट फल की प्राप्ति होती हो, वह पाप है। भगवतीसूत्र शतक १, उद्देशक ८ में पाप के विषय में चिन्तन करते हुए लिखा है कि एक शिकारी अपनी आजीविका चलाने के लिए हरिण का शिकार करने हेतु जंगल में खड्ढे खोदता है और उसमें जाल बिछाता हो, उस शिकारी को किस प्रकार की क्रिया लगती है ? भगवान् ने कहा कि वह शिकारी जाल को थामे हुए है पर जाल में मृग को फँसाता नहीं है, बाण से उसे मारता नहीं है, उस शिकारी को कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी ये तीन क्रियाएं लगती हैं। जब वह मृग को बांधता है पर मारता नहीं है तब उसे इन तीन क्रियाओं के अतिरिक्त एक परितापनिकी चतुर्थ क्रिया भी लगती है और जब वह मृग को मार देता है तो उपर्युक्त चार क्रियाओं के अतिरिक्त उसे पांचवीं प्राणातिपात क्रिया भी लगती है। ___ भगवतीसूत्र शतक ५, उद्देशक ६ में गणधर गौतम ने प्रश्न किया कि एक व्यक्ति आकाश में बाण फेंकता है, वह बाण आकाश में अनेक प्राणियों के, भूतों के, जीवों के और सत्वों के प्राणों का अपहरण करता है। उस व्यक्ति को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? भगवान् महावीर ने कहा—उस व्यक्ति को पांचों क्रियाएं लगती हैं। भगवतीसूत्र शतक ७, उद्देशक १० में कालोदायी ने भगवान् महावीर से जिज्ञासा प्रस्तुत की कि दो व्यक्तियों में से एक अग्नि को जलाता है और दूसरा अग्नि को बुझाता है। दोनों में से अधिक पाप कौन करता ___भगवान् ने समाधान दिया कि जो अग्नि को प्रज्वलित करता है, वह अधिक कर्मयुक्त,अधिक क्रियायुक्त, अधिक आश्रवयुक्त और अधिक वेदनायुक्त कर्मों का बन्धन करता है। उसकी अपेक्षा बुझाने वाला व्यक्ति कम पाप करता है। अग्नि प्रज्वलित करने वाला पृथ्वीकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक सभी की हिंसा करता है, जबकि बुझाने वाला उससे कम हिंसा करता है। भगवतीसूत्र शतक ८, उद्देशक ६ में गणधर गौतम ने पूछा-एक श्रमण भिक्षा के लिए गृहस्थ के यहाँ गया। वहाँ पर उसे कुछ दोष लग गया। वह श्रमण सोचने लगा कि मैं स्थान पर पहुँच कर स्थविर मुनियों के पास १. अभिधानराजेन्द्रकोश, खण्ड ५, पृष्ठ ८७६ २. पासयति पातयति वा पापम्। -उत्तराध्ययनचूर्णि, ५.१५२ ३. पाशयति—गुण्डयत्यात्मानं पातयति चात्मन आनन्दरसं शोषयति क्षपयतीति पापम्। -स्थानांगटीका, पृ. १६ [३८]
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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