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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र संज्ञी मनुष्यों से भी असंख्यात वर्ष एवं संख्यात वर्ष दोनों प्रकार की आयु वालों से आकर उत्पन्न होते हैं।
अवगाहना-विषयक स्पष्टीकरण-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च के अधिकार में प्रथम के दो गमकों में जघन्य अवगाहना धनुषपृथक्त्व और उत्कृष्ट छह गाऊ की कही है, किन्तु यहाँ मनुष्य के प्रकरण में पहले और दूसरे गमक में अवगाहना जघन्य एक गाऊ और उत्कष्ट तीन गाऊ की कही है। तिर्यञ्च के तीसरे गमक में जघन्य. उत्कृष्ट अवगाहना ६ गाऊ की कही है, किन्तु यहाँ जघन्य और उत्कृष्ट ३ गाऊ की कही है। चौथे गमक में तिर्यञ्च में जघन्य धनुषपृथक्त्व और उत्कृष्ट दो गाऊ कही है जबकि यहाँ.जघन्य और उत्कृष्ट एक गाऊ की अवगाहना कही है। ईशान से सहस्रार देव तक में उत्पन्न होने वाले तिर्यञ्चों व मनुष्यों के उपपातादि वीस द्वारों की प्ररूपणा
१२. ईसाणा देवा णं भंते ! कओ० उववजंति ? ०
ईसाणदेवाणं एस चेव सोहम्मगदेवसरिसा वत्तव्वया, नवरं असंखेजवासाउयसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स जेसु ठाणेसु सोहम्मे उववजमाणस्स पलिओवमठितीएसु ठाणेसु इहं सातिरेगं पलिओवमं कायव्वं। चउत्थगमे ओगाहणा जहन्नेणं धणुपुहत्तं, उक्कोसेणं सातिरेगाई दो गाउयाई। सेसं तहेव।
[१२ प्र.] भगवन् ! ईशान देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
[१२ उ.] ईशानदेव की वक्तव्यता सौधर्म देवों के समान है। विशेष यह है कि सौधर्म देवों में उत्पन्न होने वाले जिन स्थानों में असंख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च की स्थिति एक पल्योपम की कही है, वहाँ सातिरेक पल्योपम की जाननी चाहिए। चतुर्थ गमक में अवगाहना जघन्य धनुषपृथक्त्व, उत्कृष्ट सातिरेक दो गाऊ की होती है। शेष पूर्ववत्।
१३. असंखेजवासाउयसन्निमणुस्स वि तहेव ठिती जहा पंचेदियतिरिक्खजोणियस्स असंखेजवासाउयस्स, ओगाहणा वि जेसु ठाणेसु गाउयं तेसु ठाणेसु इहं सातिरेगं गाउयं। सेसं तहेव।
__[१३] असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी की स्थिति, असंख्य वर्ष की आयु वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक के समान जाननी चाहिए। अवगाहना जहाँ एक गाऊ की कही है वहाँ सातिरेक गाऊ की जानना। शेष पूर्ववत्।
१४. संखेजवासाउयाणं तिरिक्खजोणियाणं मणूसाण य जहेव सोहम्मे उववजमाणाणं तहेव निरवसेसं णव वि गमगा, नवरं ईसाणे ठिति संवेहं च जाणेजा।
[१४] सौधर्म देवों में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यञ्चों और मनुष्यों के विषय में जो नौ गमक कहे हैं, वे ही ईशान देव के विषय में समझने चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति और संवेध ईशान देवों के जानने चाहिये। १. भगवतीसूत्र (प्रमेयचन्द्रिका टीका ) भाग १५, पृ. ४७६-४७७ २. भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा.६, पृ. ३१८२