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________________ चौवीसवाँ शतक : उद्देशक-२३] [२६३ १२. जदि संखेजवासाउयसन्निमणुस्से० ? संखेजवासाउयाणं जहेव असुरकुमारेसु उववजमाणाणं तहवे नव गमगा भाणियव्वा, नवरं जोतिसियठिति संवेहं च जाणेजा। सेसं तहेव निरवसेसं। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। ॥ चउवीसइमे सते : तेवीसइमो उद्देसओ समत्तो॥२४-२३॥ [१२ प्र.] यदि वह संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्य से आकर उत्पन्न होता है, तो ? इत्यादि प्रश्न। [१२ उ.] असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों के गमकों के समान यहाँ नौ गमक कहने चाहिए। किन्तु ज्योतिष्क देवों की स्थिति और संवेध (भिन्न) जानना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् जानना। _ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते विवेचन—सातिरेक नौ सौ धनुष की अवगाहना कैसे—असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य के अधिकार में अवगाहना, जो सातिरेक नौ सौ धनुष की बताई गई है, वह विमलवाहन कुलकर के पूर्वकालीन मनुष्यों की अपेक्षा से समझनी चाहिए और तीन गाऊ की अवगाहना सुषम-सुषमा नामक प्रथम आरे में होने वाले यौगलिकों की अपेक्षा से समझनी चाहिए। पूर्वोक्त दृष्टि से मनुष्य के विषय में भी यहाँ सात ही गमक बताये गए हैं। ॥ चौवीसवाँ शतक : तेईसवाँ उद्देशक सम्पूर्ण॥ ** * १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८४२ (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. ६, पृ. ३१७४
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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