SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौवीसवाँ शतक : उद्देशक - २०] [ २२९ पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यंचों के उत्पाद - परिमाणादि वीस द्वारों की प्ररूपणा १६. जदि पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं सन्निपंचेदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, असन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणि० ? गोयमा ! सन्निपंचेंदिय०, असन्निपंचेदिय० । भेदो जहेव पुढविकाइएस उववज्जमाणस्स जाव— [१६ प्र.] भगवन् ! यदि (वे पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च), पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संज्ञीपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? [१६ उ.] गौतम ! वे संज्ञीपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि, पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले तिर्यञ्चों के भेद कहे हैं, तदनुसार यहाँ भी कहने चाहिए। यावत्———— १७. असन्निपंचेदिय़तिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए पंचेदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए सेण भंते! केवतिकाल ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्त० उक्कोसणं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागट्ठितीए उवव० । 3 [१७ प्र.] भगवन् ! असंज्ञीपंचेन्द्रिय - तिर्यञ्चयोनिक, जो पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वह कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है ? [ २७ उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है । १८. ते णं भंते ० ! अवसेसं जहेव पुढविकाइएसु उववज्जमाणस्स असन्निस्स तहेव निरवसेसं जाव भवाएसो त्ति । कालाएसेणं जहन्नेणं दो अन्तोमुहुत्ता, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंज्जतिभागं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियं, एवतियं ० । [ पढमो गमओ ] [१८ प्र.] भगवन् ! वे (असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । [१८ उ.] इस सम्बन्ध में पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी तिर्यञ्च-पंचेन्द्रियों की जो वक्तव्यता कही है, तदनुसार भवादेश तक कहनी चाहिए। कालादेश से—जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग, यावत् इतने काल गमनागमन करता है। [ प्रथम गमक ] १९. बितियगमए एस चेव लद्धी, णवरं कालाएसेणं जहन्त्रेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ, एवतियं० । [ बीओ गमओ ]
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy